दान दहेज़ की चक्की में आज पीस रही है औरत
सभ्य समाज के हाथों आज लुट रही है औरत
गाय की तरह बाँध रहे हैं लोग आज भी इन्हें
हर जुल्म को घुट के आज सह रही है औरत
नित नये क़ानून को थोपा जाता है इसके माथे
दुनिया के झूठे उसूलों में आज पल रही है औरत
अब भी कुछ लोग पाँव की जूती ही समझते हैं इन्हें
मर्दों के पाँव तले आज भी कुचल रही है औरत
तन के साथ होता है इनके मन का भी बलात्कार
इंसान की दरिंदगी से आज दहल रही है औरत
रिश्तों की मर्यादा के लिये सी लिया है जुबान इसनें
माँ-बहन-बीवी के रूप में आज सिसक रही है औरत
जुल्म के हद के बाद भी जुल्म हो रहा है इस पर
जीते जी कहीं कहीं पर आज भी जल रही है औरत.....
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
7 टिप्पणियां:
शिखा जी नमस्कार...
पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद् जो आपने मुझे अपने ब्लाग का सहयोगी बनाया
आज आपके ब्लाग में यह मेरी पहली रचना है पर यह एक बार "साहित्य प्रेमी संघ" में आ चुकी है पर आपकी ब्लाग में यह और भी अच्छी लगेगी सोच कर मैंने आज ओबारा प्रस्तुत किया है मैं आशा करता हूँ सभी पाठकों को जरुर पसंद आएगी मैं चाहता हूँ आप लोग भी मेरे ब्लाग में आकर मुझे अपना मित्र जरुर बनाये मुझे ज्वाइन करके
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१- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
२-BINDAAS_BAATEN: व्यंगात्मक क्षणिकाएं......
३- MADHUR VAANI: व्यंगात्मक क्षणिकाएं......
नीलकमल जी -
सटीक व् सार्थक पोस्ट के साथ आपका इस ब्लॉग पर शुभागमन हुआ है .आभार
स्वागत है नीलकमल जी आपका भारतीय नारी ब्लॉग पर और इतनी भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम
sach yah sab sadiyon se chala aa raha hai... lekin ab hamen hi milkar iske samadhan ke liye kadam taal karte rahna hoga..
badiya saarthak prastuti
नारी तेरी यही कहानी...
छाती में है दूध आँखों में है पानी .....मैथली शरण गुप्त //
0997392794
Sundar rachna.. jaisa k log kehte hain naari jivan jhule ki tereh .. is paar kabhi us paar kabhi...
Khair der se aane k lie maafi magar utni sakriya nahi rehti ab ,..shayad isliye aapka blog nmiyamit roop se nahi dekh pati .. aasha k aap anyatha nahi lenge :)
नारी को बार बार त्यागमयी, सहनशील और शांत कह कह कर नारी की शक्ति को कमजोर किया जाता रहा है, वो त्यागमयी है क्योंकि वो अपनों की खुशियों में लूट कर भी विजेता है. वो सहनशील है क्योंकि धरा की तरह है, शांत रह कर वो कई कलह को विष की तरह पी जाती है .बेकार का बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती, घर की सुख शांति के लिए वो शांत रह जाती है क्योंकि वो पुरुषों से ज्यादा विवेकशील है, पर इन्ही गुणों को लोग कतिपय कारणों से कमजोर समझने लगे और समाज में नारी का स्थान धीर धीरे कुचलते हुए पूरी तरह दमित करने का प्रयास करने लगे जिससे समाज में हर गलत ,वाहियात और जितने भी पाबंदियों वाले नियम कानून समाज ने बनाये वो लागू हो गए नारी पर |
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