रविवार, 30 सितंबर 2012

बोझ [एक लघु कथा ]







ऑपरेशन थियेटर के बाहर खड़े रोहित का दिल जोर जोर से धड़क रहा था .जया के अचानक  ही डिलीवरी डेट से दो हफ्ते पहले लेबर पेन उठ  जाने के कारण रोहित आनन् फानन में उसे पास के एक नर्सिंग होम में ले आया  था .सघन चिकित्सा कक्ष से निकली एक नर्स ने आकर रोहित को तसल्ली देते हुए कहा -''.....आपकी वाइफ और बेबी ठीक है .मुबारक हो आपके घर लक्ष्मी आई है !'' बेटी हुई है सुनकर रोहित थोडा बुझ सा गया  .तभी काफी देर से वहीँ उपस्थित एक बुजुर्ग उसके पास आकर बोले -''क्या बेटी के होने से हताश हो ?'' रोहित ने झिझकते हुए कहा -''...नहीं ....नहीं तो '' बुजुर्ग बोले -'' बेटा ऐसा कभी मत करना वरना ये बोझ बनकर जिंदगी भर अपने दिल पर ढ़ोना होगा .मैं भी अपनी बेटी के होने पर ऐसे ही दुखी हो गया था .मेरी पत्नी से मेरा इसी झुंझलाहट में इतना झगडा हुआ कि वो कई महीनों को मायके चली गयी थी .घर वालों के समझाने पर मैं उसे वापस ले आया .समय बीतता गया और मेरी वही बिटिया आज इतनी काबिल है कि लोग पूछते हैं ..''आप डॉ नीरजा के पिता जी हैं !''...तब मेरा सिर गर्व से ऊँचा उठ जाता है पर....फिर अपनी बिटिया के जन्म पर अपने किये व्यवहार को सोचकर दिल पर एक बोझ सा महसूस करता हूँ .बेटा तुम ऐसा कभी मत होने देना .''रोहित ने उन बुजुर्ग के झुककर चरण स्पर्श करते हुए कहा -''.....आप डॉ नीरजा के पिता जी हैं !!!....मतलब जिन्होंने अभी अभी मेरी पत्नी और बच्ची की ऑपरेशन कर जान बचाई है .आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने न केवल मेरी सोच को बदला है बल्कि मुझे मेरी बिटिया के सामने भविष्य में शर्मिंदा होने से भी बचा लिया है .''

                                                          

                      शिखा कौशिक 

6 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

यदि ऐसा हो जाये तो मज़ा ही न आ जाये पर ऐसा होता ही कहाँ है .आपकी कहानी ऐसे लोगों को सुधार दे तो शायद ये आज के समाज में सबसे सार्थक पहल होगी सुन्दर प्रस्तुति बधाई .उत्तर प्रदेश सरकार राजनीती छोड़ जमीनी हकीकत से जुड़े

virendra sharma ने कहा…

शिखा जी "बोझ "एक "लघु कथा "नहीं है ,पूरा प्रबंध काव्य है जो कम शब्दों में एक व्यापक सामाजिक दुरावस्था का पूरा ब्योरा दे गई है .इस सशक्त कथा (सामजिक सच्चाई ) लिए बधाई.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

--एक अच्छी कथा...

-----सारे समाज को सुधारे न सुधारे ..हमें तो स्वयं एक अच्छी पहल करना ही चाहए , ताकि हमें स्वयं तो संतुष्टि हो कि हमने तो अपना कार्य किया...

Rekha Joshi ने कहा…

बहुत बढ़िया लघु कथा ''बोझ ''

Rakesh Kumar ने कहा…

शिखा जी की कहानी
सुन्दर सीख दे रही है.

आभारी हैं आपके,शिखा जी.

Shikha Kaushik ने कहा…

aap sabhi ka hardik dhnyvad .