सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?
आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ;
पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ?
लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ;
घटती राम-महिमा उनको था विश्वास .
अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ;
पूर्ण कहाँ इनके बिना होती है रामायण ?
आदिकवि सम देते जानकी का साथ ;
अन्याय को अन्याय कहना है नहीं अपराध .
लिखा कहीं जगजननी कहीं अधम नारी ;
मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .
तुमको दिखाया पथ वो भी थी एक नारी ;
फिर कैसे लिखा तुमने ये ताड़न की अधिकारी !
एक बार तो वैदेही की पीड़ा को देते स्वर ;
विस्मित हूँ क्यों सिल गए तुलसी तेरे अधर !
युगदृष्टा -लोकनायक गर ऐसे रहे मौन ;
शोषित का साथ देने को हो अग्रसर कौन ?
भूतल में क्यूँ समाई सिया करते स्वयं मंथन ;
रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .
चूक गए त्रुटि शोधन होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .
हम लिखेंगे सिया के विद्रोह की कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
10 टिप्पणियां:
सही कहा शिखा जी ,एक नारी ,अपनी पत्नी की प्रेरणा से साहित्य के sarvochch shikhar पर baithe तुलसी 'नारी को tadan ka अधिकारी'कह अपना अहम् ही दर्शाते हैं जो रत्नावली की धिक्कार पर जाग उठा था जबकि उन्हें पत्नी के अलावा इस दुनिया में और कुछ सूझता ही नहीं था .
तुलसी की सीता ,वाल्मीकि की सीता से बिलकुल अलग हैं .वहाँ सीता का अपना व्यक्तित्व है जो प्रखर और मुखर है .और तुलसी ने जो रची वह उनके नारी विषयक आदर्शों के अनुसार. वे पत्नी से क्या चाहते थे सर्व विदित है .
शनिवार, 15 सितम्बर 2012
सज़ा इन रहजनों को मिलनी चाहिए
Dr. shyam guptaSeptember 13, 2012 10:10 AM
वीरू भाई आपने जो भी लिखा सब सत्य है..यही होरहा है आजकल...परन्तु आप यदि अमेरिका में यदि बैठे हैं तो आपको कैसे पता चलेगा कि कौन गलत है कौन सही....असीम या आपका वक्तव्य ही क्यों सही माना जाय..???
--वास्तव में तो --राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़छाड बिलकुल उचित नहीं ..
सत्य तथ्य यह है कि हम लोग बड़ी तेजी से बिना सम्यक सोच-विचारे अपनी जाति -वर्ग ( पत्रकार , ब्लोगर , लेखक तथा तथाकथित प्रगतिशील विचारक आदि एक ही जाति के हैं और यह नवीन जाति-व्यवस्था का विकृत रूप बढता ही जा रहा है ) का पक्ष लेने लगते हैं |
---- देश-राष्ट्र व नेता-मंत्री में अंतर होता है ...देश समष्टि है,शाश्वत है....नेता आदि व्यक्ति, वे बदलते रहते हैं, वे भ्रष्ट हो सकते हैं देश नहीं ..अतः राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़-छाड स्पष्टतया अपराध है चाहे वह देश-द्रोह की श्रेणी में न आता हो.. यदि किसी ने भी ऐसा कार्टून बनाया है तो निश्चय ही वे अपराध की सज़ा के हकदार हैं ....साहित्य व कला का भी अपना एक स्वयं का शिष्टाचार होता है..
--- अतः वह कार्टूनिष्ट भी देश के अपमान का उतना ही अपराधी है जितना आपके कहे अनुसार ये नेता...
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भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
श्याम स्मृति..The world of my thoughts...डा श्याम गुप्त का चिट्ठा..
तुलसी का दृष्टि कोण नारी के प्रति मायोपिक है .आठवाँ सर्ग लिखने के लिए रामनौमी उतारके रखनी पड़ती .पत्नी प्रताड़ित (पत्नी पीड़ित काम पीड़ित पढ़ें इसे) तुलसी ने जो लिखा है वह कई स्थलों पर उनके अवचेतन से संचालित है .प्रतिकार का भाव हैं वहां नारी के प्रति .सहमत शिखाजी आपकी नव दृष्टि से .
तुलसी का दृष्टि कोण नारी के प्रति मायोपिक है .आठवाँ सर्ग लिखने के लिए रामनौमी उतारके रखनी पड़ती .पत्नी प्रताड़ित (पत्नी पीड़ित काम पीड़ित पढ़ें इसे) तुलसी ने जो लिखा है वह कई स्थलों पर उनके अवचेतन से संचालित है .प्रतिकार का भाव हैं वहां नारी के प्रति .सहमत शिखाजी आपकी नव दृष्टि से .
शूद्र गंवार ढोल ,पशु -नारी ,सकल ताड़ना के अधिकारी .
तुलसी प्रेमियों ने इन पंक्तियों में पशु और नारी के बीच में जबरिया हाइफन डाल के यह बतलाने की बचकाना कोशिश की है (थी ) कि यहाँ उद्बोधन फिमेल एनीमल के लिए है नारी के लिए नहीं .शूद्र को लताड़ा है तुलसी की वर्ण व्यवस्था वादी सवर्ण दृष्टि ने जो उतना ही निंदनीय है जितना सीता के चरित्र के शीर्ष बिन्दुओं की अनदेखी करना .आज भी जब तब कौमार्य परीक्षण का शोर उठता है .बलात्कृत महिला को लाईट स्कर्टइड (कुलटा ,लम्पट )बतलाया जाता है .
डॉ श्याम गुप्त जी !
जिन पर संसद की मर्यादा का भार था ,वह रहजन हो गए ,थुक्का फजीहत की है सांसदों ने संसद की जिनमें तकरीबन १५० तो अपराधी हैं .क्या नहीं होता संसद में क्या नोट के सहारे संख्या नहीं बढ़ाई जाती ?क्या इसी संसद में इक राज्य पाल को बूढी गाय और पूर्व राष्ट्र पति को यह नहीं कहा गया -इक हथिनी पाल रखी है .क्या ये तमाम राहजन(रहजन ) आज जिनके हाथ काले हैं संसद की मर्यादा का दायित्व निभा सके ?
असीम त्रिवेदी को आज इस पीड़ा में किसने डाला .किसने किया उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित .वह तो चित्र व्यंग्य से अपनी रोटी चला रहा था .उस रोटी को भी उसने देश की वर्तमान अवस्था से दुखी होकर दांव पे लगा दिया .जिन नेताओं को सज़ा मिलनी चाहिए उनके प्रति यदि सहानुभूति जतलाई गई ,सारे युवा गुमराह हो जायेंगे ,
ये असीम त्रिवेदी की और श्याम गुप्त जी यहाँ अमरीका में हमारी व्यक्तिगत दुखन नहीं है ,हत्यारों के बीच खड़े होकर उन्हें हत्यारा कहना बड़ी हिम्मत का काम होता है .जोखिम का भी .असीम ने यह जोखिम क्या लखनऊ वालों को तमाशा दिखाने के लिए उठाया है जो उसे सज़ा दिलवाने की पेश कर रहें हैं .
ये कैसे भले मानस प्रधान मंत्री हैं जो कहतें हैं :हम जायेंगे तो लड़ते हुए जायेंगे .हाथ में खंजर लिए ये किससे शहादती मुद्रा में लड़ने की बात कह रहें हैं ?क्या उस निरीह जनता से जिसके पहले इन्होनें ,गोसे (उपले ,कंडे )छीन लिए ,जिस जंगल से वह इक्का दुक्का लकड़ी बीनता था उसे वहां से बे -दखल कर दिया और अब कह रहें हैं इक महीने में आधे गैस सिलिंडर से काम चलाओं .जो साल में सातवाँ सिलिंडर खरीदेगे उनसे खुले बाज़ार की कीमत ७६० रुपया ली जायेगी ,सातवें ,आठवें ,नौवें सिलिंडर की भी ..
लखनऊ में बैठा आदमी कार्टूनिस्ट की पीड़ा क्या समझ सकता है .पकड़ा जाना चाहिए चोर की माँ को ,जिनपे जिम्मेवारी है संसद की गरिमा ,मर्यादा ,सविधानिक संस्थाओं की मर्यादाओं को बनाए रखने की ,वह देश के शौर्य के प्रतीक सेनापति (पूर्व सेना अध्यक्ष )को कहतें हैं :इसकी औकात क्या है ये तो सरकारी नौकर है .
पकड़ा जाना चाहिए इन्हें .
आज नेताओं ने गत पैंसठ सालों में सब कुछ तोड़ दिया है .अब तो विनाश के बाद सुधार की अवस्था है .
जब किसी भवन (इमारत ) की शीर्ष मंजिल गिर जाती है तब सुरक्षा के लिए बाकी मंजिलों को भी गिराया जाता है .
व्यंग्य चित्र या चित्र व्यंग्य की धार लिखे हुए शब्दों लेखन से कहीं ज्यादा होती है इस धार से कार्टूनिस्ट भी छिलता है बच नहीं पाता है .शासन श्याम गुप्त जी मर्यादाओं से चलता है .अपने प्रताप से चलता है .व्यंग्यकार अपने व्यंग्य की धार खुद भी झेल लेता है .मुक़दमे इन नेताओं पर चलने चाहिए जो निशि बासर संसद का अपमान करतें हैं .तिरंगे का अपमान करते हैं .जिसने आज आम आदमी को असीम त्रिवेदी जैसे आदमी को हर संवेदन शील व्यक्ति को वहां लाकर खडा कर दिया है जहां से वह पत्थर उठाकर अपना सिर खुद फोड़ रहा है .
शासन ने देश को स्वाभिमान विहीन कर दिया है .यह बात व्यक्ति के अपने दर्द की बात है व्यभि चारी मंत्री को उसे माननीय कहना पड़ता है .जो खुद संविधानिक संस्थाओं को गिरा रहें हैं उन वक्र मुखियों के मुंह से देश की प्रतिष्ठा की बात अच्छी नहीं लगती .फिर चाहे वह दिग्विजय सिंह हों या मनीष तिवारी .उन्हें और किसी और को भी यह हक़ नहीं है कि वह त्रिवेदी पे इलज़ाम लगाएं .आपको भी जो उसके लिए सजा की पेश कर रहें हैं सज़ा का क्वांटम भी बता देते .
मेरे आदरणीय दोस्तों ,मान्य सभी चिठ्ठाकार बंधू और बांध्वियों ,आपका आवाहन करता हूँ टिप्पणियों की समिधा बिंदास होकर डाले ,मुद्दा भारत धर्मी समाज का है ,भारत की अस्मिता का है .मेरा कोई आग्रह नहीं है ,मैं ने जो कहा है वह सत्य है .मैं ऐसा मानता भर हूँ .
वीरुभाई ,43 ,309 ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन 48 188
सज़ा इन रहजनों को मिलनी चाहिए
shikha ji aapne sahi kaha lekin yah bhi sahi hai ki tulsi das ne sitaa ke charitr ko aapne dhang se soncha , purush pradhanta ki manovriti dikhti hai
हिन्दी पखवाड़े की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
बहुत सुन्दर प्रविष्टी!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नारी को लेकर तुलसी का दृष्टि कौन मायोपिक है वैयक्तिक है ,पत्नी पीड़ित तुसली के अवचेतन से संचालित है .तभी तो कह दिया -
शूद्र ,गंवार ,ढोल ,पशु -नारी ,
सकल ताड़ना के अधिकारी .
तुलसी पूजकों ने फिर भी तुलसी का बचाव किया है पशु और नारी के बीच में डंडा डालकर उस इक दिखाते हुए कहा यह पशु नारी फिमेल एनीमल (मादा पशु )के लिए प्रयुक्त है ,
इस तथा ऐसे ही अन्य प्रसंगों ने -यथा :
"नारी की झाईं परत ,अंधा होत भुजंग "जैसे प्रयोगों ने समाज का बड़ा अहित किया है .सीता की अग्नि परीक्षा अब कौमार्य परीक्षण के बतौर होती देखी गई है .लाईटस्कर्टटिड वोमेन कहकर उसकी हेटी की जाती है ,कुलटा ,लम्पट यहीं से चल निकलें हैं गलत प्रयोग .
aap sabhi ka swayam ke maton se avgat karna hetu hardik aabhar
बढ़िया लेख |
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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