हुवे समर्थक पाँच सौ, दिव्या दिव्य कमाल ।
बढे चढ़े उत्साह नित, जियो जील के जाल ।
जियो जील के जाल, टिप्पणी फिर से खोलो ।
रहा सभी को साल, साल में सम्मुख बोलो ।
होय ईर्ष्या मोय, बताओ औषधि डाक्टर ।
शतक समर्थक पूर, करे कैसे यह रविकर ।।
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2 टिप्पणियां:
"रविकर रवितनया बने,मिलें टिप्पणी साठ ,
चाहे जो लिखिये यथा, सब लेंगे निज माथ।
सब लेंगे निज माथ,जिया गद्गद होजाये ,
लिखिये कुछ भी खूब,जिया को जो भी भाये।
लिखो दनादन खूब, उगा या छुपा हो दिनकर,
करो नहीं यह चाह , रहे यदि रविकर, रविकर ॥"
खूबसूरत अहसासों से रची गई सुन्दर रचना....
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