*ऊढ़ा हो जाती अगर, दैहिक सुख को चाह ।
इन बच्चों की परवरिश, करता के परवाह ।
करता के परवाह, उड़ाती मैं गुलछर्रे ।
पर बच्चों की चाह, चली ना तेरे ढर्रे ।
कर पौरुष नि:शेष, लौट आया क्यूँ बूढ़ा ।
फिर से देता क्लेश, हुई मैं क्यूँ न ऊढ़ा ।।
* अपने पति को छोड़ दूसरे पुरुष के पास चली जाने वाली व्याहता ।
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