नूर-शुरूर----
होरी के हुरदंग को, होरा भूने हूर ।
हूर-हूर पर चढ रहा, देखो नूर-शुरूर ॥
देखो नूर-शुरूर, चहुं तरफ़ हैं हुरियारे,
तक-तक कर रंगधार,बदन पर मारें प्यारे।
श्याम,भीग कर हुईं,रंगीली सब ही गोरी,
सब पर होरी चढी, मस्त हो खेलें होरी ।।
रंगि दीन्हो गोपाल |
सखी री मोहे रंगि दीन्हो गोपाल |
भरि पिचकारी प्रीति भरे रंग, नीलो पीलो लाल |
तकि तकि अंग-अंग रंग रस डारौ अंग-अंग भये निहाल |
भींजी अंगिया, भींजी सारी, सकुचि हिये भई लाल |
बरबस बरजूं लोक लाज वस, नहिं मान्यो गोपाल |
अंग-अंग रंग टपकै झर-झर, मुसुकावैं लखि ग्वाल
श्याम ' श्याम ऐसी रंगि दीन्ही, तन मन भयो गुलाल ||
भरि पिचकारी प्रीति भरे रंग, नीलो पीलो लाल |
तकि तकि अंग-अंग रंग रस डारौ अंग-अंग भये निहाल |
भींजी अंगिया, भींजी सारी, सकुचि हिये भई लाल |
बरबस बरजूं लोक लाज वस, नहिं मान्यो गोपाल |
अंग-अंग रंग टपकै झर-झर, मुसुकावैं लखि ग्वाल
श्याम ' श्याम ऐसी रंगि दीन्ही, तन मन भयो गुलाल ||
पिचकारी के तीर
गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग,
रंगीले आंचर उडैं, जैसें नवल पतंग ।
चेहरे सारे पुत गये, चढे सयाने रंग,
समझ कछू आवै नहीं, को सजनी को कंत ।
लाल हरे पीले रंगे, रंगे अंग - प्रत्यंग ,
कज़्ज़ल-गिरि सी कामिनी, चढौ न कोऊ रंग।
रंगीले आंचर उडैं, जैसें नवल पतंग ।
चेहरे सारे पुत गये, चढे सयाने रंग,
समझ कछू आवै नहीं, को सजनी को कंत ।
लाल हरे पीले रंगे, रंगे अंग - प्रत्यंग ,
कज़्ज़ल-गिरि सी कामिनी, चढौ न कोऊ रंग।
चन्चुमुखी पिचकारि ते, वे छोडें रंग धार,
वे घूंघट की ओट ते , करें नैन के वार ।
लकुटि लिये सखियां खडीं, बदला आज चुकायं,
सुधि-बुधि भूलीं श्याम जब ले पिचकारी धायं ।
आज न मुरलीधर बचें, राधा मन मुसुकायं,
दौडी सुधि बुधि भूलकर, मुरली दयी बजाय ।
भये लज़ीले श्याम दोऊ, गोरे गाल गुलाल,
गाल गुलाबी होगये, भयो गुलाल रंग लाल ।
होली खेली लाल नै, उडे अबीर गुलाल,
सुर,मुनि,ब्रह्मा,विष्णु,शिव,तीनों लोक निहाल।
भरि पिचकारी सखी पर, वे रंग बान चलायं,
लौटें नैनन बान भय, स्वयं सखा रंगि जायं ।
भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय,
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रंगि जाय ।
भक्ति ग्यान औ प्रेम की, मन में उठै तरंग,
कर्म भरी पिचकारि ते, रस भीजै अंग-अंग ।
एसी होली खेलिये, जरै त्रिविधि संताप,
परमानन्द प्रतीति हो, ह्रदय बसें प्रभु आप ।
लौटें नैनन बान भय, स्वयं सखा रंगि जायं ।
भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय,
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रंगि जाय ।
भक्ति ग्यान औ प्रेम की, मन में उठै तरंग,
कर्म भरी पिचकारि ते, रस भीजै अंग-अंग ।
एसी होली खेलिये, जरै त्रिविधि संताप,
परमानन्द प्रतीति हो, ह्रदय बसें प्रभु आप ।
यह वर मुझको दीजिये, चतुर राधिका सोय,
होरी खेलत श्याम संग, दर्शन श्याम को होय ॥
3 टिप्पणियां:
holi ke rang se sraboar hae aaj ki post 'aabhar.
rang-birangi holi ki hardik shubhkamnayen .KAR DE GOAL
धन्यवाद शिखा जी व सन्गीता जी.....
होली के रन्ग आपके जीवन में रन्ग ही रन्ग लायें
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