क्यों भला आया है मुझको पूजने
है नहीं स्वीकार यह पूजा तेरी ,
मैं तो खुद चल कर तेरे घर आई थी
क्यों नहीं की अर्चना तूने मेरी ?
आगमन की सूचना पर क्यों तेरे
भाल पर थे अनगिनत सिलवट पड़े ,
रोकने को रास्ता मेरा भला
किसलिये तब राह में थे सब खड़े ?
प्राण मेरे छीनने के वास्ते
किस तरह तूने किये सौ-सौ जतन ,
अब भला किस याचना की आस में
कर रहा सौ बार झुक-झुक कर नमन !
देख तुझको यों अँधेरों में घिरा
रोशनी बन तम मिटाने आई थी ,
तू नहीं इस योग्य वर पाये मेरा ,
मैं तेरा जीवन बनाने आई थी !
मैं तेरे उपवन में हर्षोल्लास का
एक नव पौधा लगाने आई थी ,
नोंच कर फेंका उसे तूने अधम
मैं तेरा दुःख दूर करने आई थी !
मार डाला एक जीवित देवी को
पूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,
किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का
चाहते निज स्वार्थों की पूर्ति !
है नहीं जिनके हृदय माया दया
क्षमा उनको मैं कभी करती नहीं ,
और अपने हर अमानुष कृत्य का
दण्ड भी मिल जायेगा उनको यहीं !
साधना वैद
5 टिप्पणियां:
krodhit devi ke hriday ke udgaron ko sadhna ji aapne bahut sashakt swaroop me prastut kiya hai.badhai.
काश
अबोध न होती--
जरुरत है महामाया की |
चेत रे दुष्ट कंस --
बहुत बढ़िया ....सार्थक रचना
sadhna ji -bahut sakshakt rachna prastut ki hai aapne .aabhar
aabhar bahut sarthak rachana h
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