शनिवार, 31 मार्च 2012

अंतर्जाल बन गया धृतराष्ट्र का दरबार


अंतर्जाल  बन गया  धृतराष्ट्र  का   दरबार   ;
हो  रही  महिलाओं  की  अस्मित  तार  तार  ;
अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता या मानसिक बलात्कार  ;
ऐसी  कुत्सित अभिव्यक्ति को शत -शत बार  धिक्कार  !!
                                                 शिखा कौशिक 
                                                                          [विचारों का चबूतरा ]



                             ये  एक  विडंबना  ही  है कि आज  जहाँ  अंतर्जाल  को  महिलाएं  अपने  सशक्तिकरण  हेतु  एक  हथियार  बनाने  की ओर  अग्रसर  हैं  वही कुछ  नीच  प्रवृति   के  लोग  इसका  दुरूपयोग  कर  ''महिला  '' की गरिमा  गिराने  का कुत्सित  प्रयास  कर  रहे  हैं  .आम  भारतीय  नारी  की बात  तो  छोडिये  आज  देश  की   प्रमुख   महिला  नेत्रियों   को  जिस तरह  निशाना  बनाया  जा  रहा  है  वो  अत्यत  ही  खेद  का विषय  है  .इस  तरह के फोटो फेसबुक पर रोज़  अपलोड  किये जा रहे हैं 

[फेसबुक ]


                   इस प्रकार की अभिव्यक्ति कितने गंदें दिमागों की उपज है ...क्या बताना शेष है ऐसे फोटो  देखकर !महंगाई,भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के नाम पर बहुओं[सोनिया जी ] बेटी -बहनों [मायावती जी ]का इस तरह अश्लील चित्रण करना उन्ही  दुश्शासिनी दिमागों की उपज है जो एक स्त्री के गर्भ से जन्म  लेकर भी उसे मात्र एक देह मानते  हैं... जिसका उपभोग किया जा सकता है .......जिसका दरबारों में चीर हरण किया जा सकता है ..  ऐसे फोटोस पर आई हुई टिप्पणियां भी कम अशालीन नहीं होती .
                   यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यही  सब  करना है  तो निश्चित रूप से इस पर प्रतिबन्ध लगना ही चाहिए .ऐसी अभिव्यक्तियों .....ऐसे अंतर्जाल उपयोगकर्ताओं को शत शत बार धिक्कार है 
                          इन लिंक्स को भी देखें कैसे हमारे महान नेताओं को ज़लील करने का माध्यम बन गया है यू ट्यूब -
                                             

Political Terrorist - Indira Gandhi khan 


( Memuna Begum)

''Indira Gandhi was a biggest political terrorist. She imposed Emergency on citizens of India when she was found guilty of election fraud. She also attacked Golden Temple in Bluestar Operation in pretext of Bhindranwale who was her own creation. She killed thousands of Sikhs in the name of killing Bhindranwala. She was the reason behind separatist khalistani movement .''by  on Aug 9, 2010



Dr. Subramanian Swamy who has been a Prof. in IIT Delhi, Harvard & a successful parliamentarian can not be ignored. The country must investigate abt these allegations, Do these (Pseudo) gandhies deserve the treatment Indians give them. I certainly have my doubts. Why can't there be somebody other then gandhies a congress leader. How long this sycophancy prevail. by  on Nov 24, 2010


jawaharlal nehru exposed -rajiv dixit




                                                          







आशा जी को [Akanksha] हार्दिक शुभकामनायें

Scrapbook photo 1
आशा जी को [Akanksha] ''भारतीय नारी '' ब्लॉग परिवार की ओर से उनकी पुस्तक के  विमोचन  पर  हार्दिक  शुभकामनायें  !

[Asha Saxena द्वारा Akanksha -1 दिन पहले पर पोस्ट किया गया
आप को यह सूचित करते हुए मुझे बहुत हर्ष हो रहा है कि कल शनीवार दिनांक ३१.३.२०१२ को अपरान्ह ४.३० बजे होटल विक्रमादित्य, रिंग रोड चौराहा, नानाखेड़ा उज्जैन में मेरे कविता संग्रह "अनकहा सच " का विमोचन है]



                                        shikha kaushik 

’ इन्द्रधनुष’ --- अंक आठ का शेष ....--- स्त्री-पुरुष विमर्श पर.....डा श्याम गुप्त का उपन्यास....



      

        ’ इन्द्रधनुष’ ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास.....पिछले अंक  से क्रमश:......
                                           अंक  आठ का शेष  ....

                                        ' बधाई, केजी, वाह ! तुमने तो एक भी गोल नहीं होने दिया । तभी टीम जीत पाई ।'  अंतर कालेज चेम्पियनशिप के लिए होरहे फुटवाल मैच  के समाप्त होने पर सुमित्रा ने मैदान पर बधाई देते हुए यह बात कही । मैच विश्व-विद्यालय की टीम से था जो नगर की सशक्त टीम थी ।  मैच बड़ी कठिनाई से १-० से हमारे पक्ष में रहा । मैंने धन्यवाद कहा तो सुमि कहने लगी , ' अच्छा कृष्ण तुम सदैव बैक-कीपर के स्थान पर क्यों खेलते हो ? फारवर्ड खेलो तो शायद कुछ ओर गोल से जीतें ।'
               ' कुछ और गोल हो भी तो  सकते हैं ।  भई, यह तो टीम-भावना का खेल है', मैंने चकित होते हुए कहा, 'कोई तो बैक रहेगा ही ।' 
              ' पर नाम तो केवल गोल करने वाले का होता है।'
              ' क्या मैंने नाम  के लिए कभी कोई काम किया है ?'  मैंने हंसते हुए प्रति-प्रश्न किया ।, ' हम तो वैसे भी बैक-बेन्चर्स हैं । और यदि एसा ही होता तो तुम मुझे क्रेडिट नहीं देरही होतीं ।'
              ' आप क्रिकेट खेला कीजिये ।  उसमें कोई बैक नहीं होता, सभी फ्रंट पर होते हैं, और सुमित्रा भी खुश।' कुमुद ने सलाह दी 
              ' हाथ-पैर भी ज्यादा टूटते हैं ।'  मैंने हंसते हुए कहा , ' क्या मंतव्य है आपका कुमुद जी ?'
              सब हँसने लगे तो मैंने कहा, ' वैसे आपका परामर्श विचार योग्य है । धन्यवाद ।'

                              **                       **                       ** 

                                             वार्ड-क्लिनिक के लिए  जब हम लोग मेडीकल वार्ड पहुंचे तो  हाउस डा. मुकुलेश रंगनाथन व रेजीडेंट डा पी के सिंघल एम.डी. को एक रोगी से जूझते देखा ।  रोगी आक्सीजन पर था व काफी समय से भर्ती था।  दोनों पैरों की नसों में सेलाइन -ग्लूकोज़ व नॉर-एड्रेलिन ड्रिप चढाई जा रही थी । दोनों डाक्टर बारी बारी से रोगी के ह्रदय की मालिश  व कृत्रिम श्वांस दे रहे थे । बीच बीच में कई बार सुई द्वारा सीधे ह्रदय में कोरामीन, एड्रेलिन व डेकाड्रोन भी दिया गया । लगभग आधे घंटे तक अथक परिश्रम के बाद भी रोगी को बचाया नहीं जा सका । एक बार पुनः रोगी की श्वांस,  ह्रदय की धड़कन व आँख की पुतली देख कर उसे मृत घोषित कर दिया गया ।
              ' सर !  क्या उसके बचने की आशा थी ?' मैंने पूछा ।
              ' नहीं ।' डा. सिंघल बोले,  ' सी ओ पी डी का पुराना रोगी था,  ह्रदय व फैन्फड़े  पूरी तरह से खराब हो चुके थे ।'
             ' फिर,  इतना सब करने की, क्या आवश्यकता थी ?'  
              डा. सिंघल सब को लेकर  नर्सेज चेंबर में आये।  बोले,  'डाक्टर जहां जीवन का प्रश्न होता है, वहां और कोई प्रश्न नहीं होता । प्रश्न परिश्रम, खर्च या समय व्यर्थ होने का नहीं है, प्रश्न है...आशा, आस्था, कर्म, आत्म-संतुष्टि, रोगी व रोगी के परिजनों की संतुष्टि का ।'
               ' हम ये सब इसलिए करते हैं कि कहीं मन के कोने में डाक्टर को, रोगी के परिजनों  को एक आशा होती है कि शायद कुछ क्षणों के लिए ही प्राण लौट आयें । शायद ईश्वर को मंजूर हो । यह आस्था है, यहाँ तर्क व नियम नहीं चलते, यह संसार है ।'
                 'चिकित्सक, यदि बचना तो है नहीं यह सोच कर प्रयत्न करना छोड़ दे तो उसे भी आत्मग्लानि रहेगी कि यदि प्रयत्न करते तो शायद......।  अतः अपनी आत्म-संतुष्टि के लिए भी प्रयत्न करना आवश्यक है । साथ ही यदि प्रयत्न ही नहीं होंगे तो नए नए अनुभव, प्रयोग, आविष्कार व रोगी सेवा-उपचार में प्रगति कैसे होगी ? यह विज्ञान है ।  जान जाते समय रोगी ने न जाने किस किस को पुकारा होगा । शायद सबसे अधिक डाक्टर को ।  रोगी की आत्मा व शरीर भी तो अंतिम समय आदर व सहानुभूति चाहते होंगे ।  उसके परिजनों को भी पूर्ण उपचार व सेवा की संतुष्टि होनी चाहिए कि डाक्टरों ने तो पूरा प्रयत्न किया आगे ईश्वर इच्छा । अन्यथा लापरवाही समझी जायेगी ।क़ानून के अनुसार भी रोगी को यथासंभव बचाने के टर्मिनल उपाय करना व रिकार्ड रखना वैधानिक दायित्व है ।  फिर मिरेकल्स भी तो होते हैं न ?'
                   ' यही है आज का प्रेक्टीकल सबक जो जीवन भर एक चिकित्सक  को  स्मरण रखना है । सहानुभूति, सहृदयता, दायित्व निर्वहन व कर्तव्य-पारायाणता  ही एक चिकित्सक के व्यवहारिक गुण होते हैं ।  समझे ....डाक्टर कृष्ण गोपाल !'  
                  ' यस सर !'  मैंने स्वीकृति में कहा । 
                  मुझे चुप-चुप चलते देख  कर सुमित्रा मुस्कुराने लगी,  तो मैंने पूछा , ' क्या बात है ? '
                  ' मिला न शेर को सवा-शेर ।'
                  'क्या मतलब ?'
                 ' तुम जैसे ज्ञानी को भी ज्ञान देने वाला मिला न ।'
                 ' बहुत खुश हो ?'  
                 ' यस ।'
                ' सच है सुमित्रा ! हम जहां भी मानवीयता, सौहार्द व सहृदयता से चूकते हैं एवं किसी घटना, बिंदु या विषय पर गहराई से युक्ति-युक्त पूर्ण सोचने में लापरवाही करते हैं वहीं गलत निर्णय व सोच को आधार मिल जाता है  यहीं तो अनुभव व वरिष्ठता की महत्ता है । हम चाहे जितने भी ज्ञानी क्यों न होजायं, अनुभवी व सीनियर, सीनियर ही रहेगा ।'
                 ' हार को स्वीकारना व  सत्य को तुरंत स्वीकार करना ही तो जीत है, जीवन है । तुम्हारी यही बात तो मन में अटक कर रह जाती है, कृष्ण ! मन को भटकाती है ।'
                 ' चलो तुम भी आज खींच लो, अच्छा मौक़ा हाथ आया है', मैंने कहा,  " मत चूके चौहान ।"
                ' बात ठीक है तुम कभी कभी ही तो मौक़ा देते हो खींचने का '
                               **                     **                           **
                                             फाइनल ईयर की परीक्षाएं समाप्त होने पर मैं केन्टीन में बैठा न्यूज़-पेपर उलट रहा था कि सुमित्रा आई और धम से बैठती हुई बोली , 'अब मुझे जाना होगा केजी' उसके स्वर में उदासी थी ।
                  "  हाँ, कहाँ ? ' मैं सोचते हुए बोला , 'कब ?'
                  '  भूल गए ?',  'ऐसे तो तुम मुझे भी भूल जाओगे।  जाते ही।  मुझे दिल्ली जाना है, सुन रहे हो न, कल।           
                   'वह तो तुम हर बार जाती हो ।'
                 ' हाँ, पर अब वापस नहीं आऊँगी ।'
                  ओह, ओह ! हाँ, वास्तव में , ' अब तो तुम्हें जाना ही है ।'  मैंने अखबार एक तरफ रखकर कहा ।
                ' मेरी शादी पर आओगे ?'
                ' नहीं । बधाई, इंटर्नशिप भी वहीं करोगी ?'
               ' हाँ, अपनी शादी पर बुलाओगे ?'
               ' नहीं भी, और पता नहीं भी ।'
               ' हूँ, पक्के हो । सुमि  कहने लगी,-
                                               " तेरी दोस्ती का बोझ हमसे उठाया न गया ।
                                                बस यही बोझ सा दिल में लिए फिरते हैं ।"
              ' वाह क्या धाँसू शे'र है, सवा शेर है जी ।  इसे कहते हैं गुरु दक्षिणा ।'
              ' मुझे याद करोगे भी या  " आउट आफ साईट आउट आफ माइंड "......'
              ' और  तुम...'  मैंने पूछा ।
              ' सुमि कहने लगी.....
                                            " जब चाहूँ मन में चले आना, 
                                             मन मंदिर को महका जाना ।
                                             यादें तेरी मन में मितवा,
                                             बन करके सदा मधुमास रहे ।। 
               अच्छा,  सुनो............
                                               " तू दूर रहे या पास रहे,
                                                यह अनुरागी मन यही कहे।
                                                तेरे जीवन की बगिया में,
                                                जीवन भर प्रिय मधुमास रहे ।"     
                                      **                             **                              **
                     ट्रेन पर सुमि को बैठकर  मैंने कहा, ' गुड बाय ।'
                   ' बाय बाय',  उसने उदास होते हुए कहा।   'सचमुच बहुत याद आओगे ।'  वह लगभग अश्रु पूरित नेत्रों से बोली ।
                    मैं मुस्कुराया तो कहने लगी , ' तुम्हारी आँखों में कभी आंसूं नहीं आते ?'  'भगवान करे न आयें कभी ।'   मैं हंस कर रह गया ।
                    'याद रखोगे?' , सुमित्रा ने कहा । 
                    ' नहीं ।' मैंने कहा ...........
                                                "  हम तसब्बुर में न तेरे ख्याल लायेंगे ,
                                                  आवाज़ दिल से देना, बस चले आयेंगे ।" 
                     गाड़ी चल  दी और वह हाथ हिलाती हुई चली गयी । 
                               .............. अंक आठ समाप्त .....क्रमश अंक नौ ...अगली पोस्ट में .....
                     
                

   

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

जिसे बीस साल पत्नी के रूप में रखा था वह दुल्हन बनी

married father of a daughters marriage
हरदोई/एजेंसी ! बेटी के हाथ पीले करने की खातिर किसी बाप को अगर पहले अपने हाथ पीले करने पडे़ तो यह सुनने में ही अजीब लगेगा लेकिन उत्तरप्रदेश के एक जिले में बेटी की शादी के लिए पहले पिता के विवाह करने का मामला प्रकाश में आया है।
मामला उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक गांव का है। शादी करने वाले बुजुर्ग पिता की दस संतानों में सात जीवित हैं। हरदोई के बेनीगंज थाने के बक्सापुर गांव की दो बहुए उषा वर्मा समाजवादी पार्टी की सांसद और राजेश्वरी देवी विधायक हैं। इस गांव के रहने वाले दलित बिरादरी के रामौतार ने करीब बीस साल पूर्व अपने बडे़ भाई की साली को गरीबी के कारण विवाह नहीं कर पाने के कारण अपने साथ रख लिया था तब से दोनों एक साथ पति-पत्नी के रूप में रहते थे और दोनों के दस बच्चे भी हुए जिनमें से सात जीवित हैं। एक पुत्र सबसे बड़ा और बाकी छह बेटियां हैं।
दोनों इतने साल एक साथ पति-पत्नी के रूप में रहते रहे लेकिन शादी करने की जो वजह बनी वह इनकी बेटी थी। दर असल रामौतार जब अपनी बेटी का विवाह करने के लिए रिश्ता देखने गया तो लोगों ने उससे उसके विवाह को लेकर सवाल किया । चूंकि विवाह नहीं किया है। इसलिए वह अपनी बेटी का कन्यादान नहीं कर सकेगा। इस समस्या को जब उसने अपने परिवार में बताया तो उसके सगे संबंधियों ने मिलकर उसे विवाह करने की सलाह दे डाली ।
शुभ मुहूर्त में विवाह का आयोजन किया जिसमें रामौतार दूल्हा बना और जिसे उसने बीस साल पत्नी के रूप में रखा था वह दुल्हन बनी। उसके बाद गांव के लोग रामौतार को दूल्हा बनाकर उसी के घर बारात लेकर पहुंचे जहां लंबे समय से साथ रह रही राजरानी दुल्हन के रूप में सजी उसका इंतजार कर रही थी । बारात में रामौतार का लड़का बाहर होने के कारण नहीं शामिल हुआ जबकि उसकी बेटियां बाप की बारात में शामिल हुई उसके बाद सगे संबंधियों की मौजूदगी में शादी की सारी रस्में अदा की गई और लोगों को दावत दी गई। 
Source : http://pyarimaan.blogspot.in/2012/03/blog-post_30.html

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नया फतवा- नशे की हालत दिया गया तलाक भी मान्य

ON '' KNOWLEDGE  IS POWER '' BLOG BY-MR.NARESH THAKUR
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स्त्रियों की उम्र -पुरुषों का विमर्श



 
 स्त्रियों की उम्र  -पुरुषों   का  विमर्श  
[google se sabhar ]



पन्द्रह   की  हो  गयी  हो  
सलीके  से  रहो  ; 
घर  का  काम सीख  लो  
ससुराल   में  नाक  मत  कटवाना  
सिलाई  सीख  लो  
सीख  लो  खाना  बनाना ! 
बीस  से ऊपर  हो गयी 
अब  तक  विवाह  नहीं   हुआ  ;
लड़की   में खोट   है  या 
बाप  पर  नहीं   दहेज़   
के   लिए नोट हैं !

पैतीस की होने आई 
एक बेटा न पैदा कर पायी ;
तीन तीन बेटियां 
पैदा कर 
पति की चिंता बढ़ाई !
पैतालीस में ही 
बुढ़िया सी लगती है ;
ऐसी फब्तियां   हर   
स्त्री   पर  
पुरुष द्वारा कसी जाती  हैं !

पुरुष  इस  पर  भी    
स्त्रियों पर लगाते   हैं इल्ज़ाम 
''स्त्रियाँ उम्र  छिपाती  हैं ''
क्या  बताएं  स्त्रियाँ 
पुरुष वर्ग  को  
स्त्रियों की  उम्र उनसे  पहले  ही  
पुरुषों   को   पता  चल  जाती   है !

पुरुषों के   इस आचरण   
से एक  बात  समझ  आती है 
ऐसी  बाते  करते   पुरुष 
वर्ग को कभी  शर्म   
नहीं  आती है ! ! !

                              shikha kaushik 


गुरुवार, 29 मार्च 2012

विकलांग लड़की की पत्थर से शादी !

marraige-new.jpg
फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)।। इस वैज्ञानिक युग में भी समाज को अंधविश्वास की जकड़न से छुटकारा नहीं मिल पाया है। समाज को झकझोर देने वाला अंधविश्वास का नया मामला उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के एक गांव का है, जहां एक पिता अपनी विकलांग बेटी की शादी पत्थर से तय कर निमंत्रण पत्र भी बांट चुका है। शादी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और गांव के देवी मंदिर में इसके लिए अनुष्ठान भी शुरू हो चुका है।

फतेहपुर जिले के जाफरगंज थाने के परसादपुर गांव की गौरा देवी मंदिर में यज्ञ और कर्मयोगी श्रीकृष्ण की रासलीला का मंचन किया जा रहा है। इसी यज्ञ के पंडाल में एक अप्रैल को गांव के बालगोविंद त्रिपाठी मानसिक एवं शारीरिक रूप से कमजोर अपनी बेटी की शादी मंदिर के एक पत्थर के साथ हिंदू रीति-रिवाज से रचाएंगे। इसके लिए उन्होंने बाकायदा निमंत्रण पत्र छपवा कर इलाके के गणमान्य व अपने रिश्तेदारों में बांटा भी गया है। हैरानी की बात यह है कि निमंत्रण पत्रों में सभी वैवाहिक कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के लखनऊ सचिवालय में तैनात एक कर्मचारी राजेश शुक्ल द्वारा सम्पन्न कराए जाने का जिक्र है।

त्रिपाठी का कहना है कि वह अपनी बेटी की शादी मंदिर के पत्थर के साथ इसलिए करने जा रहे हैं, ताकि वह अगले जन्म में विकलांग पैदा न हो। ग्रामीण जगन्नाथ का कहना है कि पत्थर के साथ शादी रचाने की यह पहली घटना है। कुछ दिन पूर्व भी त्रिपाठी ने ऐसी कोशिश की थी लेकिन गांव वालों के दबाव में वह सफल नहीं हो पाए थे। मकसद में कामयाब होने के लिए ही अबकी बार उन्होंने सचिवालय के कर्मचारी को आगे किया है, ताकि पुलिस कार्रवाई न हो सके।

बिंदकी के उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) डॉ. विपिन कुमार मिश्र ने बताया, 'मुझे इसके बारे में जानकारी मिली है और मैंने जाफरगंज थानाध्यक्ष को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।'

जाफरगंज के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया, 'यह समाज का फैसला है, इसके लिए क्या कहा जाए। पत्थर से शादी हो सकती है या नहीं, यह जिले के अधिकारी बताएंगे।' थानाध्यक्ष जाफरगंज मनोज पाठक ने कहा, 'एसडीएम का निर्देश मिल चुका है, गांव जाकर जांच पड़ताल की जाएगी। बेजान या पशुओं से किसी की शादी रचाना कानूनन अपराध है।'

इस घटना से एक बात स्पष्ट है कि आधुनिक कहे जाने वाले समाज में ऐसे चेहरे भी मौजूद हैं, जो अंधविश्वास में भरोसा करने की बड़ी भूल कर रहे हैं। यदि निमंत्रण पत्रों में सचिवालय कर्मी का नाम उसकी इजाजत पर छपा है तो मामला और संगीन बन जाता है।

बुधवार, 28 मार्च 2012

अच्छे नंबर नहीं लाई तो बेटी से भीख मंगवाई

ऊपर क्लिक करके विडियो देखें: कम मार्क्स लाने पर बाप ने बेटी से भीख मंगवाई
 
ऊपर क्लिक करके विडियो देखें: कम मार्क्स लाने पर बाप ने बेटी से भीख मंगवाई
मैसूर।। क्लास 7 में पढ़ने वाली बेटी एग्जाम में अच्छे नंबर नहीं लाई तो नाराज पिता ने उसे अजीबोगरीब सजा दे डाली। मैसूर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाली 12 वर्षीय बेटी को उसके पिता ने स्कूल यूनिफॉर्म में मंदिर के सामने भीख मांगने को कहा। घटना सोमवार रात की है।

वह मंदिर के सामने बैठी हुई थी और उसकी आंखों में आंसू थे। इस दरम्यान एनजीओ वर्कर एमपी वर्षा का ध्यान उसकी तरफ गया। वह बच्ची को पुलिस स्टेशन ले गईं, जहां उसने सारी कहानी बताई। उसके बाद पिता को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके खिलाफ जूवेनाइल जस्टिस ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। मंगलवार को उसे जमानत मिल गई। घटना से गुस्साए पड़ोसियों ने उसकी कार क्षतिग्रस्त कर दी। पिता ने पुलिस को बताया कि वह अपनी बेटी को जीवन की कठिनाइयों से रू - - रू कराना चाहता था। बच्ची अब चाइल्ड वेलफेयर कमिटी ( सीडब्ल्यूसी ) के पास है।

’ इन्द्रधनुष’ -- अंक आठ ---- स्त्री-पुरुष विमर्श पर डा श्याम गुप्त का उपन्यास.....

     
                       


      
      ’ इन्द्रधनुष’ ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास
....पिछले अंक सात  से क्रमश:......
    
                                   अंक आठ   

                                 लाइब्रेरी के मैगजीन सेक्शन में- मैं और एके जैन यूंही बैठे पन्ने उलट रहे थे कि अचानक हवा में तैरती हुई आवाज़ आयी --
                          "   जब जब बहार आये , 
                            और फूल मुस्कुराए, 
                            हमें तुम याद आये,
                            हमें तुम याद आये ।। "
                मैंने सिर उठाकर देखा  तो सुमित्रा अपनी मित्र साधना वर्मा के साध गुनगुनाती हुई सीढियां उतर रही थी ।   जैन के अचानक हंस पड़ने से दोनों चौंकी और चुप होकर जाने लगीं ।
                मैंने पूछा , ' सुमि, क्या दिल्ली की याद आरही है ?' 
                हाँ, वह बोली, पर मैं तो वहां होती हूँ तब भी यही गीत गुनुगुनाती हूँ ।  जैन व साधना एक दूसरे का मुंह ताकने लगे।  दोनों के चले जाने पर जैन ने पूछा , ' इसका क्या अर्थ हुआ ?'
                पता नहीं, सुमि  अच्छा गाती है ।  
                ' ये तो सभी जानते हैं ।'
                चलो क्लास में चलते हैं, मैंने उठते हुए कहा ।   
                           
         **                 **                    **
                                     
                          "ग्रामीण व सामुदायिक  चिकित्सा"  कार्यक्रम के अंतर्गत हम लोग एक सुदूर ग्राम में घर घर जाकर सामुदायिक स्वास्थ्य, स्त्री व वाल स्वाथ्य पर परामर्श व विभिन्न आंकडे एकत्रित करने के क्रम में टोली बनाकर भ्रमण कर रहे थे ।
                           सुनील कपूर ने चलते चलते कहा,  ' क्या बात है, आठ प्रिगनेंसी, छ: डिलीवरी,  दो जराउली     ( टेटनस )  में मर गए,  दो पीलिया से।  बचे दो- एक को सूखा रोग है और एक अभी गोद में है । क्या आंकड़े हैं ।' 
                 ' अधिकतर घरों में यही हाल है ।' सुमित्रा कहने लगी . ' अशिक्षा , गरीबी, भूख, पिछडापन फिर फिर अशिक्षा ...गरीबी ...ये दुश्चक्र कब ख़त्म होगा !'
               ' हम सब लोग कहाँ तक समझायेंगे इन सब को। क्या कुछ लोगों को बताकर सब कुछ ठीक हो जाएगा ?'  कुसुम ने कहा ।
              ' कितनी गन्दगी, कीचड  व बदबूदार नालियां हैं  यहाँ ? रंजन ने नाक-मुंह सिकोड़कर, रुमाल नाक पर रखते हुए कहा , ' कौन दोबारा आना चाहेगा यहाँ । क्या फ़ायदा व्यर्थ घूमने का ।  ये तो सुधरने वाले हैं नहीं ।'
               ' इसी सब के डाटाकरण व उपायीकरण के लिए हम सब घूम रहे हैं यहाँ । यदि बुद्धिवादी, प्रोफेशनल, पढ़े-लिखे लोग, शासन- पदस्थ लोगों को यह पता ही नहीं होगा तो ये सब कमियाँ, बुराइयां दूर कैसे होंगी ? इसके उपाय कैसे सूझेंगे । मैं तो चाहता हूँ कि प्रत्येक मेडीकल व अन्य कालेजों के व संस्थानों के छात्रों को अनिवार्यतः बारी बारी से गांवों में जाना चाहिए । यदि हम ही पहल नहीं करेंगे तो कैसे सुधरेगी यह हालत ?' मैंने कहा ।
               'कौन दोबारा आयेगा यहाँ ? तुम्हीं आना कीचड व गन्दगी में घूमने यहाँ । सतीश रंजन ने नाक सिकोड़ते हुए कहा ।
               हाँ.. हाँ भैया, हम तो पैदा यहाँ हुए हैं तो निभायेंगे ही । अपना तो उद्देश्य भी यही है । ' जीना यहाँ मरना यहाँ,  इसके सिवा और जाना कहाँ ?"  मैंने सुमित्रा की और देखते हुए मुस्कुराकर कहा ।
              ' मैं तुम्हारा इशारा समझ रही हूँ, अच्छी तरह ।' सुमित्रा बोली ।
              ' क्या समझी ?'
              'क्या समझते हो, गूढ़ बातें सिर्फ तुम ही कह-समझ सकते हो ? कोई और नहीं । '
             ' तुम्हारे बारे में तो न कभी मैंने एसा सोचा न कहा ।'
              ' ठीक है समय आने पर बताएँगे, हम क्या समझे ।'
             ' मैं कुछ समझा नहीं ।' रंजन ने आश्चर्य से कहा, ' एसी क्या बात है ?' 
             'कहाँ  व किन  बहसबाजों के चक्कर में फंस रहे हैं,  डा रंजन ।'  साधना  वर्मा बोली,'  आपको तो वैसे भी दोबारा नहीं आना है यहाँ । चलिए आगे बढिए ।'

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                                          स्त्री रोग चिकित्सा विभाग  में ड्यूटी के दौरान अधिकतर पुरुष -छात्र वार्ड में अधिक रुकने में रूचि नहीं लेते । अतः कोई भी छोटे मोटे  काम के बहाने अन्य विभाग या लाइब्रेरी में पढ़ते रहते हैं । इसी तरह गायब होने के पश्चात जब मैं विभाग में पहुंचा तो हाउस इंचार्ज डा. रेनू ने पूछा, ' डाक्टर साहब , इतने समय से कहाँ थे ?'
                 ' मैं यूरिया वाइल ( रक्त एकत्र करने के लिए सेम्पल शीशी ) लेने गया था ।'
                 ' कहाँ हैं ?'
                 ' नहीं मिले, तैयार हो रहे हैं ।'
                 ' मेरे पास हैं, सुमित्रा ने दो वायल दिखाते हुए कहा ,' ज़नाब, रोमियो-जूलियट पढ़ रहे थे लाइब्रेरी में ।'
                 ' हूँ, तुमने कब देखा ?'
                 ' जब तुम पूरी तरह से डूबे हुए थे, मैं उठा लाई ये तुम्हारी टेबल से ।  वैसे भी पुस्तकों में डूबकर तुम सब भूल जाते हो ।'
                 ' पुस्तकें सदा साथ निभाती हैं ।'
                 ' उलाहना दे रहे हो ?'
                 ' नहीं, कहावत की बात है ।'
                 ' तुम इसी तरह सब भूल जाओगे, पुरानी आदत है ।'    
                 ' ये क्या बहस है?'  डा रेनू ने आश्चर्य से पूछा, ' तुम दोनों में कुछ हुआ है क्या ?'
                 'कभी कुछ हुआ ही तो नहीं ।' मैंने कहा ।
                 'सुमि मुस्कुराकर, घूरती हुई तेजी से वार्ड में चली गयी ।

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                                       ' ओह ! आई गौट इट'   अब मालुम हुआ आजकल क्यों दिखाई नहीं देते, गुप्त रहते हो ।'  लाइब्रेरी में क्या क्या गुल खिलाये जा रहे हैं, चुप चुप ।  बहुत चालू हो..... गोपाल ।  रोमियो-जूलियट ...हाऊ रोमांटिक ...।  तभी आजकल स्मार्ट होते जारहे हो दिन ब दिन ।  जी चाहता है तुम से शादी करलूं ।  पर सोचती हूँ लोग क्या कहेंगे?'  वार्ड से बाहर आते हुए लम्बी-चौड़ी मोटी नसरीन मुझे घूरते हुए चहकी ।
               ' क्या कहेंगे,  यही कि  वाह  ! क्या मस्त हथिनी और हथिनी शावक की सुन्दर जोड़ी है ।  लोग कमरा ले ले कर पीछे दौड़ेंगे,  हो सकता है टाइम पत्रिका के फ्रंट पर आजाय, " मेड फार ईच अदर " के शीर्षक के साथ ।' मैंने सहज भाव से कहा ।
                'बदमाश ! तुम तो बहुत ही ...ह ......।'
                'शट अप, नसरीन मोटी, क्या बके जारही है ? कुछ तो शर्म करो ।' सुमि  हंसते हंसते चिल्लाई ।
                'अरे वाह ! तुम कौन हो भई, ओब्जेक्शन करने वाली ?  क्या तुम्हें कोइ एतराज  है मेरे प्रस्ताव पर ?' नसरीन कमर पर दोनों हाथ रखकर पूछने लगी ।
                 ' गो टु हैल,'  मैं तो चलती हूँ ।'  सुमि जाने लगी ।
                 ' ल्लो  ....ओ ....।' तुम्हारा सिक्योरिटी गार्ड तो वाक् आउट कर गया ।' नसरीन ने थुल थुल देह से हंसते हुए सुमित्रा की पीठ पर कमेन्ट दे मारा ।

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                                           इसी तरह चलती रही हमारी मित्रता । साहित्य, कला, राजनीति, स्त्री -पुरुष सम्बन्ध,पति-पत्नी रिश्ते, मेरी अपनी शादी, नारी-विमर्श, फ़िल्में , सामयिक घटनाएँ, कालिज की  राजनीति, चिकित्सा विषय, चरक, सुश्रुत, कश्यप, हिप्पोक्रेट, धर्म, दर्शन, अद्यात्म, विज्ञान ...लगभग प्रत्येक विषय पर चर्चाएँ होती थीं । प्रत्येक विषय पर उसकी स्वतंत्र  राय व टिप्पणी होती थी । दर्शन, धर्म, इतिहास पर गहन अध्ययन न होने पर भी सामान्य ज्ञान व तीब्र विवेक-बुद्धि के आधार पर उसकी टिप्पणियाँ सटीक होती थीं । गायन, वादन, नृत्य में तो वह कुशल थी ही ।
                                            छुट्टियों में जब वह दिल्ली जाती तो लौटकर विस्तार से बताती । रमेश के साथ कहाँ कहाँ घूमे , क्या क्या किया, क्या खाया ......। फिर अचानक चुप होकर कहती . अरे, मैं तुम्हें क्यों बोर कर रही हूँ । चलो भूल जाओ, काफी पीते हैं । मेरे पीछे पढाई ठीक से की या नहीं,  नोट्स कहाँ हैं,  क्या क्या लिखा सुनाओ ।  सारी कैफियत लेती .....और हाँ.. किसी को सिलेक्ट लिया या नहीं ।'
                  ' कभी रमेश से मिलवाओ तो ',  मैंने कहा  ' वो क्या कभी तुमसे मिलने यहाँ नहीं  आता ?'
                   ' मैं  ही हर छुट्टी में दिल्ली जाती हूँ, हर बार मिलना होता ही है । रमेश डे-स्कालर है, और छुट्टियों में  पिता के नर्सिन्ग होम में  काम,सीखना होता है । यहां आकर समय खराब करने का क्या फ़ायदा ।’  वह बोली,  ’ तुम टालो मत, बताओ तो ।’
                                                एक दिन काफ़ी हाउस में सुमि पूछ बैठी , ’ केजी ! कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है यह सोचकर कि क्या दो व्यक्ति इतने समान विचारों वाले हो सकते हैं । ’
                ' हाँ, यदि वे पिछले जन्म के भाई-भाई, भाई-बहन हों  या प्रेमी-प्रेमिका...या फिर  "आइड़ेंटीकल ट्विन्स " ( जुड़वां बच्चे ) ।'          
                वह आश्चर्य से बोली...'हर बात का उत्तर है तुम्हारे पास ..और तुरंत !'
                ' या फिर इस जन्म में अमर प्रेम के ध्वज वाहक ,' मैंने कहा ।
                             वह सोचते हुए होस्टल की और बढ़ने लगी , फिर मुडकर कहने लगी, ' अच्छा कोई लड़की पसंद की या नहीं ? और वह साईक्लिस्ट अनु ?'
                 मैंने कहा, सुनो ....
   " ऊधो ! मन नाहीं दस बीस । 
     एक था सो गयो संग राधिका, कौन फंसाए शीश ।"   
              '  हूँ, तो एसा करती हूँ ......अच्छा चलती हूँ ।'
                                 दो दिन तक सुमित्रा से बात ही नहीं हुई । वह अन्य छात्राओं से घिरी सीधी क्लास रूम में आती और उसी तरह सीधी हास्टल चली जाती । तीसरे दिन मैंने स्वयं ही रोक कर कहा, ' सुमि, तुमसे बात करनी है, चलो केन्टीन चलते हैं ।'  वह चुपचाप बिना बात किये साथ चलने लगी ।
                 ' क्या बात है, तबियत तो ठीक  है,  इतनी चुप चुप क्यों हो ? ये क्या  है  दो दिन से बात ही नहीं हुई ? क्या हुआ है ?'
                 ' एक साथ इतने सारे सवाल ? बस यूंही मैंने सोचा मैं ही तुमसे मिलना -जुलना बंद कर देती हूँ, यही ठीक रहेगा, प्रेक्टिस भी होजायेगी ।'  वह सीरियस बन कर बोली और चलने लगी ।
                 ' अच्छा, उस बात पर नाराज़ हो अभी तक ।'
                 हूँ, वह मुस्कुराते हुए बोली और जाने लगी ।
                ' अरे, एसा मत करना' , मैंने कहा, ' आखिर ऐसी भी क्या जल्दी है,  इतनी लड़कियां हैं, जब चाहें किसी को भी पटा लेंगें । कई को तो तुम  जानती ही हो ।'
                 ' अच्छा, एसा, सचमुच ?'  वह पलटकर हंसने लगी ।
                  'क्या विश्वास नहीं है मुझ पर ?'
                 ' येस ।' वह जाते जाते बोली ।
         
   -----.क्रमश: .......... अंक आठ का शेष ...अगली पोस्ट में .....।