बलात्कार से सम्बंधित कानून में बालिग व् नाबालिग का अंतर ख़त्म होना चाहिए क्योंकि बलात्कार करने वाला कभी नाबालिग नहीं होता .इसका सम्बन्ध उम्र से नहीं अपराध से जोड़ा जाना चाहिए .दामिनी के साथ न केवल बलात्कार बल्कि दरिंदगी की सारी सीमायें पार करने वाला अफरोज यदि नाबालिग के आधार पर कानून से बच जाता है तो यह पूरे मानवीय समाज के मुंह पर तमाचा मारे जाने जैसा है .वैसे भी अफरोज मुसलमान है और मुस्लिम कानून के अनुसार वो बालिग है .अफरोज को यदि भारतीय कानून ने फाँसी पर नहीं चढ़ाया तो भारतीय समाज में एक गलत सन्देश जायेगा जिसका खामियाजा भविष्य में भारतीय समाज को भुगतना होगा .
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
सही..... वलात्कारी नावालिग़ कैसे हो सकता. ....वलात्कारी ..वलात्कारी है न हिन्दू न मुसलमान ....वह अपराधी है उसे भी ...बराबर की सज़ा होनी चाहिए ...
-----नावालिग़....उसे तो और अधिक कठोर सज़ा दी जानी चाहिए.....
बिल्कुल सच
सबसे बढ़ कर वो दरिंदा था
जब न्यूज़ पेपर में नाबालिग की माँ का सुकून भरा चेहरा देखी और
ब्यान पढ़ी कि आज उसका लल्ला इसलिए बच गया फांसी से कि वो बलात्कार करते समय नाबालिग था
खून खौल कर रह गया ...।
उस माँ की बेबसी कैसी होगी जो पूरे जिंदगी ये सोच-सोच कर मरेगी कि दरिंदा जीवित है
बिल्कुल ठीक कहा आपने अब समय आ गया है नाबालिग की परिभाषा तय करने के लिए एकमात्र मापदंड सिर्फ़ उम्र नहीं होना चाहिए । अपराध , मानसिक स्तर , आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए
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