माँ ने कसकर पकड़ी
बिटिया की हथेली ,
खींचते हुए उसे
अपने साथ ले चली ,
अँधेरी ,संकरी ,घुटनभरी
थी वो अंतहीन गली !!
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न दिखता था कुछ ,
न ही कुछ सूझता था ,
हैवानी साये नोंचना चाहते थे
माँ और बेटी दोनों को
खुद को बचाती माँ ,
बेटी को छिपाती ,
थर -थर कांपती ,
बेटी को छाती से चिपटाती,
माँ बढती आगे-आगे
पर किधर -कहाँ ?
ये थी कुटिल पहेली !
क्योंकि अँधेरी ,संकरी ,घुटनभरी
थी वो अंतहीन गली !!
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चलते चलते थकने लगी माँ ,
होने लगी निढाल ,
बेटी ने दिया सहारा ,
तभी बेटी को उसकी बेटी ने पुकारा ,
माँ को वहीँ छोड़ बेटी ने दौड़कर
अपनी बिटिया की कसकर
पकड़ी हथेली पर
फिर नहीं पकड़ में आया बेटी को
उसकी माँ का हाथ ,
माँ को निगल गयी
अँधेरी ,संकरी ,घुटनभरी
थी वो अंतहीन गली !!
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ये गली है पुरुष अहम् की
जिसमे से होकर गुजरना है
हर माँ और उसकी बेटी को ,
इसमें तानाशाही के हैं अँधेरे ,
स्त्री को दोयम दर्जे का प्राणी
बनाये रखने का संकरापन
और स्त्री देह के शोषण की घुटन ,
अंतहीन हैं अत्याचार पुरुष के ,
नहीं पहुंची एक भी किरण समानता की
और न ही चली स्त्री के अस्तित्व
को स्वीकारती गुलाबी हवा
क्योंकि ये गली है
अँधेरी ,संकरी और घुटनभरी !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
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