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सृजन संग संहार बल, सदा नारि के संग | करें नहीं उपयोग पर,सुख-सेवित जब अंग | सुख सेवित जब अंग,अन्य क्यों बनें सहायक| अपनी करनी सदा स्वयं फल की परिचायक | अपना स्वयं सहाय, बने रख दृढ़ता तन मन , अनुपम बल है नारि,हो विनाश या नवसृजन||
4 टिप्पणियां:
bilkul sahi .aabhar
सृजन संग संहार बल, सदा नारि के संग |
करें नहीं उपयोग पर,सुख-सेवित जब अंग |
सुख सेवित जब अंग,अन्य क्यों बनें सहायक|
अपनी करनी सदा स्वयं फल की परिचायक |
अपना स्वयं सहाय, बने रख दृढ़ता तन मन ,
अनुपम बल है नारि,हो विनाश या नवसृजन||
आभार आदरणीया-
आभार आदरणीय-
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