गुरुवार, 30 अगस्त 2012

मैं अबला नहीं - डॉ नूतन गैरोला



मेरी हदों को पार कर मत आना 
 तुम यहाँ मुझमे छिपे हैं 
शूल और विषदंश भी जहाँ |
फूल है तो खुश्बू मिलेगी
तोड़ने के ख्वाब न रखना| 

सीमा का गर उलंघन होगा 
कांटो की चुभन मिलेगी …
सुनिश्चित है मेरी हद मैं नहीं 
मकरंद मीठा शहद .. हलाहल हूँ मेरा पान न करना |
याद रखना मर्यादाओं का उलंघन न क��..

                       SHIKHA KAUSHIK .

4 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति .कैराना उपयुक्त स्थान :जनपद न्यायाधीश शामली :

virendra sharma ने कहा…

बिब्म्बात्मक संकेत ,खबरदार सीमा में रहना ,.यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?

virendra sharma ने कहा…

अबला नहीं मैं सबला हूँ ,,खाल उतार ढोलक पे चढ़ा दूंगी ,अपनी मौत मर ,बे -मौत मत मर ,रह परिसीमा में ,अपनी सुध ले ....बढ़िया रचना है .मेरी हदों को पार कर मत आना
तुम यहाँ मुझमे छिपे हैं
शूल और विषदंश भी जहाँ |यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
. यहाँ भी पधारें -

डा श्याम गुप्त ने कहा…

-----एक दम भ्रमित भाव हैं ...क्या कहना चाहता है कवि...मर्यादा उल्लंघन की बात तो ठीक है परन्तु हदों को पार किये बिना ..स्त्री-पुरुष आपस में मिलेंगे कैसे ... संसार कैसे चलेगा ..यथा ..
--"सुनिश्चित है मेरी हद मैं नहीं
मकरंद मीठा शहद .. हलाहल हूँ मेरा पान न करना" ---नारी की मूल नारीत्व की
व्याख्या के विपरीत है...
---- हद और मर्यादा और उल्लंघन में अंतर होता है...
----वस्तुतः कवयित्री का भाव ठीक है परन्तु भाषा , शब्दों व कविता-कला पर अधिकार न होने से अर्थ-अनर्थ होजाता है..