मेरी हदों को पार कर मत आना
तुम यहाँ मुझमे छिपे हैं
शूल और विषदंश भी जहाँ |
फूल है तो खुश्बू मिलेगी
तोड़ने के ख्वाब न रखना|
सीमा का गर उलंघन होगा
कांटो की चुभन मिलेगी …
सुनिश्चित है मेरी हद मैं नहीं
मकरंद मीठा शहद .. हलाहल हूँ मेरा पान न करना |
याद रखना मर्यादाओं का उलंघन न क��..
SHIKHA KAUSHIK .
4 टिप्पणियां:
सार्थक प्रस्तुति .कैराना उपयुक्त स्थान :जनपद न्यायाधीश शामली :
बिब्म्बात्मक संकेत ,खबरदार सीमा में रहना ,.यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
अबला नहीं मैं सबला हूँ ,,खाल उतार ढोलक पे चढ़ा दूंगी ,अपनी मौत मर ,बे -मौत मत मर ,रह परिसीमा में ,अपनी सुध ले ....बढ़िया रचना है .मेरी हदों को पार कर मत आना
तुम यहाँ मुझमे छिपे हैं
शूल और विषदंश भी जहाँ |यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
. यहाँ भी पधारें -
-----एक दम भ्रमित भाव हैं ...क्या कहना चाहता है कवि...मर्यादा उल्लंघन की बात तो ठीक है परन्तु हदों को पार किये बिना ..स्त्री-पुरुष आपस में मिलेंगे कैसे ... संसार कैसे चलेगा ..यथा ..
--"सुनिश्चित है मेरी हद मैं नहीं
मकरंद मीठा शहद .. हलाहल हूँ मेरा पान न करना" ---नारी की मूल नारीत्व की
व्याख्या के विपरीत है...
---- हद और मर्यादा और उल्लंघन में अंतर होता है...
----वस्तुतः कवयित्री का भाव ठीक है परन्तु भाषा , शब्दों व कविता-कला पर अधिकार न होने से अर्थ-अनर्थ होजाता है..
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