काले मोतियों में पिरोये ,
अनगिनत विश्वास
और शंकाओं को पाले,
डाले रहती है गले में
जान से भी बढ़कर
सहेजती है
इस काले मोती के धागे को |
खोने का
कभी बिखरने का डर
सताता रहता है |
कुंदन में जड़ी हो
या कोरे धागे में,
कोई फर्क नहीं पड़ता ,
आस्थावान होती है नारी,
विश्वास,अविश्वास से परे
हर तीज-त्योहर पर,
मंगलसूत्र के लंबी उम्र की
करती है कामना |
बीते दिन एक नारी की
ले ली जान मंगलसूत्र ने,
ये खबर सुनकर भी,
आसपास
बरबस दुहरा गयी नारियाँ,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र की |
पीट गयी एक नारी ,
शराबी के हाथों ,
होश में आते ही
बात जुबां पर आई,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र की |
एक धागे की बढ़ा देती है बिसात,
कर देती है अमर
मनके के हर दाने को
अपने विश्वास से |
नारियां कहाँ छोड़ पाई हैं
आज भी अपने पुरातनपंथी को ?
वो गंगू बाई हो या,
कंपनी की मीटिंग में बैठी
पुरुष से होड़ करती नारी ,
बातों -बातों में ,
छू जाते हैं उसके हाथ
गले के मंगलसूत्र को |
जन्म से ही बंध जाती है
मंगलसूत्र से नारी
और चाहती है जीवनपर्यंत
इससे बंधे रहना |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
सताता रहता है |
कुंदन में जड़ी हो
या कोरे धागे में,
कोई फर्क नहीं पड़ता ,
आस्थावान होती है नारी,
विश्वास,अविश्वास से परे
हर तीज-त्योहर पर,
मंगलसूत्र के लंबी उम्र की
करती है कामना |
बीते दिन एक नारी की
ले ली जान मंगलसूत्र ने,
ये खबर सुनकर भी,
आसपास
बरबस दुहरा गयी नारियाँ,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र की |
पीट गयी एक नारी ,
शराबी के हाथों ,
होश में आते ही
बात जुबां पर आई,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र की |
एक धागे की बढ़ा देती है बिसात,
कर देती है अमर
मनके के हर दाने को
अपने विश्वास से |
नारियां कहाँ छोड़ पाई हैं
आज भी अपने पुरातनपंथी को ?
वो गंगू बाई हो या,
कंपनी की मीटिंग में बैठी
पुरुष से होड़ करती नारी ,
बातों -बातों में ,
छू जाते हैं उसके हाथ
गले के मंगलसूत्र को |
जन्म से ही बंध जाती है
मंगलसूत्र से नारी
और चाहती है जीवनपर्यंत
इससे बंधे रहना |
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
4 टिप्पणियां:
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
sarthak post ke sath aapne is blog par shubhagman kiya hai .aapka hardik swagat hai .aabhar
mera bhi aap dono ko hardik aabhar .
----कैसे विश्वास को छोड़ दे नारी.... नर अपने अहं को छोड़े न छोड़े ... वह अपनी सहज प्रकृति को क्यों छोड़े... नहीं छोड़ रही ...तो पुरुषों को इस पर सोचना चाहिए ....कब सोचेंगे ?
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