बुधवार, 8 अगस्त 2012

मंगलसूत्र और नारी


काले मोतियों में पिरोये ,
अनगिनत विश्वास
और शंकाओं को पाले,
डाले रहती है गले में
जान से भी बढ़कर
सहेजती है
इस काले मोती के धागे को |
खोने का
कभी बिखरने का डर
सताता रहता है |
कुंदन में जड़ी हो
या कोरे धागे में,
कोई फर्क नहीं पड़ता ,
आस्थावान होती है नारी,
विश्वास,अविश्वास से परे
हर तीज-त्योहर पर,
मंगलसूत्र के लंबी उम्र की
करती है कामना |
बीते दिन एक नारी की
ले ली जान मंगलसूत्र ने,
ये खबर सुनकर भी,
आसपास
बरबस दुहरा गयी नारियाँ,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र की |
पीट गयी एक नारी ,
शराबी के हाथों ,
होश में आते ही
बात जुबां पर आई,
लंबी हो उम्र मेरे मंगलसूत्र की |
एक धागे की बढ़ा देती है बिसात,
कर देती है अमर
मनके के हर दाने को
अपने विश्वास से |
नारियां कहाँ छोड़ पाई हैं
आज भी अपने पुरातनपंथी को ?
वो गंगू बाई हो या,
कंपनी की मीटिंग में बैठी
पुरुष से होड़ करती नारी ,
बातों -बातों में ,
छू जाते हैं उसके हाथ
गले के मंगलसूत्र को |
जन्म से ही बंध जाती है
मंगलसूत्र से नारी
और चाहती है जीवनपर्यंत
इससे बंधे रहना |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

4 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak post ke sath aapne is blog par shubhagman kiya hai .aapka hardik swagat hai .aabhar

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

mera bhi aap dono ko hardik aabhar .

डा श्याम गुप्त ने कहा…

----कैसे विश्वास को छोड़ दे नारी.... नर अपने अहं को छोड़े न छोड़े ... वह अपनी सहज प्रकृति को क्यों छोड़े... नहीं छोड़ रही ...तो पुरुषों को इस पर सोचना चाहिए ....कब सोचेंगे ?