मंगलवार, 10 जनवरी 2012

अनाथ विधवाओं की समस्या का समाधान क्या है ? Indian widows

स्वराज्य करूं ब्लॉग पर एक दिल दुखाने वाली ख़बर देखी

कृष्ण कन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ?

खबर  आयी है कि भगवान कृष्ण कन्हैया की पवित्र भूमि वृन्दावन में संचालित सरकारी आश्रय गृहों की अनाथ विधवाओं के मरने के बाद उनके शरीर के टुकड़े -टुकड़े करके स्वीपरों द्वारा जूट की थैलियों में भर कर यूं ही फेंक दिया जाता है !   यह समाचार कल एक हिन्दी सांध्य दैनिक 'छत्तीसगढ़ ' में प्रकाशित हुआ है, जो अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू ' में छपी खबर का अनुवाद है.  अगर यह खबर सच है तो  यह भयंकर अमानवीय और शर्मनाक करतूत हमारे लिए राष्ट्रीय शर्म की बात  है .  क्या आज का इंसान इतना गिर चुका है कि किसी मानव के निर्जीव शरीर को सदगति देने के बजाय वह उसके टुकड़े-टुकड़े कर  किसी गैर ज़रूरी सामान की तरह कचरे में फेंक दे ? 
   छपी खबर  के अनुसार वहाँ ऐसा इसलिए होता है ,क्योंकि इन असहाय और अनाथ महिलाओं की मौत के बाद उनके सम्मानजनक अंतिम संस्कार के लिए कोई वित्तीय प्रावधान नहीं है.
इस पर आई कुछ प्रतिक्रियाएं भी आप देखें  .


ह्रदय को झकझोरनेवाली खबर दी है आपने.सत्य को परखने की बात मत कीजिये बात सत्य ही होगी. इस निर्मूल्य होते मानवीय संबंधों के लिए कुछ करने के लिए अन्ना जैसे आन्दोलन की जरूरत है और उससे पहले अपने हृदयों को स्वक्छ करने की भी

रेखा said...

आपकी खबर से तो मैं कांप गई हूँ ...क्या ऐसा भी कहीं हो सकता है ?
बहुत ही मार्मिक और हृदयविदारक प्रसंग


यह ख़बर दिल दुखाती है और हिंदी ब्लॉगर्स ने अपनी संवेदना भी प्रकट की है लेकिन यह समस्या इससे ज़्यादा तवज्जो चाहती है। यह समस्या एक स्थायी समाधान चाहती है।
क्या है इस समस्या का समाधान कि भविष्य में फिर किसी अनाथ और ग़रीब विधवा के साथ ऐसा अमानवीय बर्ताव न हो।
जब हमने इस पर विचार किया जो हमने पाया कि हिंदू रीति से अंतिम संस्कार बहुत महंगा पड़ता है। महंगा होने की वजह से ही ग़रीब विधवाएं अंतिम संस्कार से वंचित रह जाती हैं। महंगा होने की वजह से ही समाज के लोग उनके साथ ग़ैर इंसानी बर्ताव न चाहते भी करते हैं।
दफ़नाने की विधि अमीर ग़रीब सब अपना सकते हैं। इसमें अपेक्षाकृत बहुत कम ख़र्च आता है और अगर बिल्कुल ग़रीब को सादा तरीक़े से दफ़नाया जाए तो फिर वह ख़र्च भी नहीं होता। दफ़नाने की विधि हिंदुओं में भी प्रचलित है लेकिन इसे केवल मासूम बच्चों के लिए और सन्यासियों के लिए ही प्रयोग किया जाता है।
अगर सभी के लिए यही एक विधि लागू कर दी जाए तो यह समस्या ही समाप्त हो जाएगी कि ग़रीब के अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे लिहाज़ा उसका अंतिम संस्कार नहीं हो पाया।
विधवा विवाह की व्यवस्था होनी चाहिए। समाज में इसे प्रोत्साहन देना चाहिए।
आजकल वैसे भी समाज में स्त्री लिंग का अनुपात पुरूषों के मुक़ाबले कम है।
ऐसे में अगर ढंग से कोशिश की जाए तो कामयाबी मिलने में कोई शक नहीं है।
इस तरह एक विधवा नारी को समाज में इज़्ज़त का मक़ाम भी हासिल हो जाएगा और वह एक इंसान की तरह शान से सिर उठाकर जी सकेगी और मरने के बाद इज़्ज़त के साथ ही उसका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

आपकी क्या राय है ?

2 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

anwer jamaal bhaai aapki raay ek dam durust hai dafnaane me koi kharch nahi hota kintu humaare samaaj me marne ke baad bhi dharm ki chinta hai us pparthiv shareer ki nahi.aapne is dardnaak sachchaai se rubru karaya..aabhar.dil dahla dene vaai sachchaai hai.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ राजेश कुमारी जी ! धर्म की चिंता अच्छी बात है। ज़मीन में दफ़न करना भी हिंदू धर्म के विरूद्ध नहीं है। ग़रीब लोगों को इसकी अनुमति धर्माधिकारियों द्वारा मिल जाए तो अच्छा रहेगा।
आपने इस गंभीर विषय पर अपनी राय दी बहुत अच्छा किया।
इस समस्या को आप अपने ब्लॉग आदि पर भी उठाएं तो जागरूकता कुछ न कुछ ज़रूर आएगी।