मंगलवार, 24 जनवरी 2012

जब आये ऋतुराज बसंत .....डा श्याम गुप्त....


            बसंत का आगमन हो चला है , प्रस्तुत है एक बासंतिक रचना ..... प्रारम्भ -- विश्व भर में, प्रकृति में , कण कण में  सरसता प्रदान करने वाली , बसंत की देवी ..की वन्दना से ....
           सरस्वती वन्दना

भारती   सरस्वती  शारदा   हंसवाहिनी ।
जगती   बागेश्वरी   कुमुदी  ब्रह्मचारिणी ।
बुद्धिदात्री चन्द्रकान्ति भुवनेश्वरी वरदायिनी ।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं  नमो  वीणावादिनी ।।

                    बसंत 
जब आये  ऋतुराज बसंत ।।
आशा तृष्णा प्यार जगाये ,
विह्वल मन में भरे उमंग ।
मन में फूले प्यार की सरसों ,
अंग अंग भर  उठे  उमंग ।


जब आये ऋतुराज बसंत ।।


अंग अंग में रस भर जाए,
तन मन में जादू कर जाए ।
भोली सरल गाँव की गोरी,
प्रेम मगन राधा बन जाए ।


कण कण में ऋतुराज समाये,
हर प्रेमी  कान्हा  बन  जाए ।
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे  रंग  रस  रूप अनंत ।


जब आये ऋतुराज बसंत ।।
                                                           ---चित्र-- सरस्वती...गूगल साभार  
                                                                                                                                     अन्य--निर्विकार

5 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे रंग रस रूप अनंत ।|

सार्थक रचना ||

vandana gupta ने कहा…

सरस्वती वन्दना के साथ वसंतागमन की सुन्दर प्रस्तुति।

vidya ने कहा…

अति सुन्दर...

Mamta Bajpai ने कहा…

आश्रित होना ही है तो ईश्वर का हाथ थामो...स्वयं का हाथ थामो....वही सच्चा विश्वास है...सुन्दर है

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद रविकर...ममता जी....विध्याजी व वन्दना जी .....