बसंत का आगमन हो चला है , प्रस्तुत है एक बासंतिक रचना ..... प्रारम्भ -- विश्व भर में, प्रकृति में , कण कण में सरसता प्रदान करने वाली , बसंत की देवी ..की वन्दना से ....
सरस्वती वन्दना
भारती सरस्वती शारदा हंसवाहिनी ।
जगती बागेश्वरी कुमुदी ब्रह्मचारिणी ।
बुद्धिदात्री चन्द्रकान्ति भुवनेश्वरी वरदायिनी ।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो वीणावादिनी ।।
बसंत
जब आये ऋतुराज बसंत ।।
आशा तृष्णा प्यार जगाये ,
विह्वल मन में भरे उमंग ।
मन में फूले प्यार की सरसों ,
अंग अंग भर उठे उमंग ।
जब आये ऋतुराज बसंत ।।
अंग अंग में रस भर जाए,
तन मन में जादू कर जाए ।
भोली सरल गाँव की गोरी,
प्रेम मगन राधा बन जाए ।
कण कण में ऋतुराज समाये,
हर प्रेमी कान्हा बन जाए ।
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे रंग रस रूप अनंत ।
जब आये ऋतुराज बसंत ।।
---चित्र-- सरस्वती...गूगल साभार
अन्य--निर्विकार
5 टिप्पणियां:
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे रंग रस रूप अनंत ।|
सार्थक रचना ||
सरस्वती वन्दना के साथ वसंतागमन की सुन्दर प्रस्तुति।
अति सुन्दर...
आश्रित होना ही है तो ईश्वर का हाथ थामो...स्वयं का हाथ थामो....वही सच्चा विश्वास है...सुन्दर है
धन्यवाद रविकर...ममता जी....विध्याजी व वन्दना जी .....
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