गुरुवार, 12 जनवरी 2012

गीत---जान लेते पीर मन की तुम अगर ...डा श्याम गुप्त

जान लेते पीर मन की तुम अगर ,       
तो न भर निश्वांस झर झर अश्रु झरते |
देख लेते जो दृगों के अश्रु कण तुम,
तो नहीं विश्वास के साए बहकते ||

जान जाते तुम कि तुमसे प्यार कितना ,
है हमें और तुम पै है एतवार कितना|
देख लेते तुम अगर इक बार मुड़कर,
खिलखिला उठती  कली,  गुंचे महकते ||


महक उठती पवन, खिलते कमल सर में,
फूल उठते सुमन, करते भ्रमर गुन गुन |
गीत अनहद का, गगन गुंजार देता ,
गूँज उठती प्रकृति में, वीणा की गुंजन ||


प्यार की, कोई भी परिभाषा नहीं है,
दिल के भावों की, कोई भाषा नहीं है |
प्रीति की भाषा, नयन पहचान लेते,
नयन नयनों से मिले, सब जान लेते

झांक लेते तुम जो इन भीगे दृगों में,
जान जाते पीर मन की, प्यार मन का |
तो अमित विश्वास के साए महकते,
प्यार की निश्वांस के पंछी चहकते ||

10 टिप्‍पणियां:

vikram7 ने कहा…

प्यार की, कोई भी परिभाषा नहीं है,
दिल के भावों की, कोई भाषा नहीं है |
saii khaa ,sundar rachana

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

करना प्रेम एक अलग बात,
हो जाना प्रेम है अलग बात.
'प्रेम' तो है दोनों से विलक्षण,
वह है जीवन की सौगात.

प्रेम नहीं रिश्तों का भूखा,
रिश्ते भूखे हैं प्रेम के आज.
घुल जाय प्रेम यदि रिश्तों में,
इससे अच्छी नहीं कोई बात.

प्रेम का दर्जा कितना ऊँचा?
रिश्तों, अन्तरिक्ष से ऊंचा.
त्याग है प्रेम की अन्तः शक्ति
त्याग ही रखता प्रेम को ऊँचा.

बेनामी ने कहा…

sunder kavita sir bhav aur shabado ka
sunder samanvay

amrendra "amar" ने कहा…

bahut umda bhav liye rachna.sarthak prastuti ke liye badhai

रविकर ने कहा…

खूब-सूरत प्रस्तुति |
बहुत-बहुत बधाई ||

sangita ने कहा…

झांक लेते तुम जो इन भीगे दृगों में,
जान जाते पीर मन की, प्यार मन का |
तो अमित विश्वास के साए महकते,
प्यार की निश्वांस के पंछी चहकते ||sundar |

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!
लोहड़ी पर्व की बधाई और शुभकामनाएँ!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद.शास्त्रीजी,सन्गीतजी, रविकर,अमरेन्द्र,प्रतिष्ठा,डा तिवारी, विक्रम व शुक्ला जी....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ..

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद सन्गीता जी ...जो आप पधारे....