रात ये कितनी बाकि है,
पुछ रहा हूँ तारों से;
पवन सुखद बनाने को,
अब कहता हूँ बहारों से ।
चाँद को ही बुलाया है,
निद्रासन मंगवाया है;
परी मेरी अब सोयेगी,
भँवरों से लोरी गवाया है ।
डैडी की सुन्दर गुड़िया है,
मम्मी की जान की पुड़िया है;
क्यों रात को पहरा देती है,
ज्यों सबकी दादी बुढ़िया है ।
स्वयं पुष्पराज ही आयेंगे,
खुशबू मधुर फैलायेंगे;
निद्रादेवी संग चाकर लाकर,
मिल गोद में सब सुलायेंगे ।
परी मेरी न रोयेगी,
परी मेरी अब सोयेगी ।
3 टिप्पणियां:
सुंदर रचना।
कोमल भाव की सुन्दर रचना - 'पूछ' रही है तारों से कर लें वर्तनी की अशुद्धि कविता के वजन को भी घटाती है -'बाकी' लिखें .कविता में भाव सौन्दर्य है कोमल भावना का प्रस्फुटन है .
bahut sundar bhavon ko samete prastuti .aabhar
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