सोमवार, 9 जनवरी 2012

ये आँखें



कभी अनमोल मोतियों
को गिरा देती हैं |
तो कभी बहुत कुछ 
अपने में छुपा लेती हैं ,
ये आँखें |
   -- " दीप्ति शर्मा "

5 टिप्‍पणियां:

डा श्याम गुप्त ने कहा…

दीप्ति जी...यह तो एक स्टेटमेन्ट है...जो एक प्रसिद्ध ..जग ज़ाहिर तथ्य है....
---यदि इसी तथ्य को कहना है तो अपने मूल काव्य-शब्द , कविता में कहिये.... सुन्दर विषय है.....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

यथा.....
अनमोल मोतियों को जो गिरा देती हैं आंखें ।
न जाने क्या क्या छुपा लेती हैं आंखें।

Mamta Bajpai ने कहा…

और कभी कभी मन की सारी बातें भी बोल देती हैं

amrendra "amar" ने कहा…

सार्थक/खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
सादर.

Sanju ने कहा…

सुंदर रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।