जलती शमा का ये कहना वज़ा है|
की परवाना खुद को समझता ही क्या है |
यही कह रहा है परवाना जलकर ,
जला जो नहीं उसका जीना भी क्या है |
जो जल जल के करते कठिन साधना-तप,
भला इससे बढ़कर के सज़दा ही क्या है |
यूं जल कर शमा पर शलभ पूछता है,
बताये की कोई खता मेरी क्या है |
पिघलती शमा कह रही है सभी से,
तिल तिल न पिघला वो जीवन ही क्या है |
तड़पता हुआ एक परवाना बोला,
मेरी प्रीति है ये अदा तेरी क्या है |
वो बुझती हुई शम्मा बोली चहक कर,
जिए ना मरे साथ जीना ही क्या है |
तभी पास बैठा पियक्कड़ यूं बोला,
नहीं साथी कोई तो पीना भी क्या है |
यही प्रीति की रीति है श्याम' न्यारी,
नहीं प्रीति जीवन में जीना भी क्या है ||
की परवाना खुद को समझता ही क्या है |
यही कह रहा है परवाना जलकर ,
जला जो नहीं उसका जीना भी क्या है |
जो जल जल के करते कठिन साधना-तप,
भला इससे बढ़कर के सज़दा ही क्या है |
यूं जल कर शमा पर शलभ पूछता है,
बताये की कोई खता मेरी क्या है |
पिघलती शमा कह रही है सभी से,
तिल तिल न पिघला वो जीवन ही क्या है |
तड़पता हुआ एक परवाना बोला,
मेरी प्रीति है ये अदा तेरी क्या है |
वो बुझती हुई शम्मा बोली चहक कर,
जिए ना मरे साथ जीना ही क्या है |
तभी पास बैठा पियक्कड़ यूं बोला,
नहीं साथी कोई तो पीना भी क्या है |
यही प्रीति की रीति है श्याम' न्यारी,
नहीं प्रीति जीवन में जीना भी क्या है ||
6 टिप्पणियां:
pyar ke bhavon ko sarthak karti behtrin post hae.
बेहतरीन ग़ज़ल....बहुत खूब.....
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ||
बहुत उम्दा
धन्यवाद सन्गीता जी, सुशमा जी व रविकर.....
शानदार प्रस्तुति सर ...
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