गुरुवार, 5 जनवरी 2012

यादों के झरोखे से---कविता ...डा श्याम गुप्त....

यादों के झरोखे से,
जब तुम मुस्कुराती हो ;
मन में इक नयी उमंग -नयी-
कान्ति बन कर आती हो |

उस साल तुम अपनी,
नानी के यहाँ आई थीं ,
सारे कैम्पस  में, एक -
नयी रोशनी सी लाई थीं |

वो घना  सा  रूप-
वो घनी केशराशि ;
हर बात में घने-घने -
कहने की अभिलाषी |

उसके बाग़ की बग़ीचों की,
फूलपत्ती और  नगीनों केी।
 हर चीज़ थी घनेरी-घनेरी,
जैसे आदत हो हसीनों केी ।

गर्मी  की  छुट्टी  में,
 मैं आऊंगी फ़िर ।
चलते चलते तुमने,
कहा था होके अधीर ।

अब न वो गर्मी आती है ,
न वैसी गर्मी  की छुट्टी ।
शायद करली है तुमने,
मेरे  से  पूरी कुट्टी ॥

9 टिप्‍पणियां:

Pragya Sharma ने कहा…

Nice .

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut komal pyaari se rachna.

Mamta Bajpai ने कहा…

श्रंगार रस का अच्छा चित्रण

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

अब न वो गर्मी आती है ,
न वैसी गर्मी की छुट्टी ।very nice.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद.....प्रग्या, राजेश,ममता व निशा जी....आभार...

आशा बिष्ट ने कहा…

sundar panktiya..

कविता रावत ने कहा…

गुप्त जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार!

कौशल किशोर ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा
बधाई.

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डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवा आशाजी, किशोर जी एवं कविता जी.....