रविवार, 4 सितंबर 2011

हाथ छुड़ा के -- फिर घर चलना |

माँ का ललना |
झूले पलना ||

समय समय पर  
दूध पिलाती |
जीवन खातिर-
हाड़ गलाती |
दीप शिखा सी 
हर-पल जलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


आयु  बढती--
ताकत घटती |
पति-पुत्र में -
बंटती-मिटती |
आज बिकल है -
कल भी कल-ना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


आया रिश्ता- 
बेटा बिकता |
धीरे-धीरे--
माँ से उकता |
होती परबस-
डरना-मरना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


हो एकाकी ,
साँसे बाकी |
पोते-पोती 
बनती जोती |
हाथ छुड़ा के  --
फिर घर चलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||

6 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर भावाव्यक्ति।

Shalini kaushik ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
शिक्षक दिवस की बधाइयाँ

Shikha Kaushik ने कहा…

मनोभावों की सार्थक प्रस्तुति .माँ का जीवन ऐसा ही तो होता है .आभार

S.N SHUKLA ने कहा…

bahut sundar post,aabhaar

virendra ने कहा…

समय समय पर
दूध पिलाती |
जीवन खातिर-
हाड़ गलाती |
दीप शिखा सी
हर-पल जलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||
ati sundar bhaav saabhaar

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut sunder laajabaab.