शिखा जी को लिखा
पथ दिखा सहेली कहाँ गईं ?
पथ दिखा सहेली कहाँ गईं ?
वो शिखा सहेली कहाँ गईं ??
ब्लॉग जगत वीराना है -
तू वापस आ जा जहाँ गई ||
कुशलक्षेम हम चाहें तो--
वाह में बदलें आहें तो
सही रास्ता चुन पाए --
सम्मुख हों दो राहें तो ||
दीदी के भी दर्शन दूर |
दूर कर रहे कोई टूर |
सुख-दुःख के हैं साथी हम
क्यूँ आने से हो मजबूर??
बेटे को पढ़ने दो |
* घट रही है रोटियां घटती रहें---गेहूं को सड़ने दो |
* बँट रही हैं बोटियाँ बटती रहें-- नंगों को लड़ने दो |
* गल रही हैं चोटियाँ गलती रहें--- पानी को घटने दो |
* मिट रही हैं बेटियां मिटती रहे---बेटे को पढ़ने दो |
* घुट रही है बच्चियां घुटती रहें-- बर्तन को मलने दो ||
* लग रही हैं बंदिशें लगती रहें--- दौलत को बढ़ने दो |
* पिट रही हैं गोटियाँ पिटती रहें---रानी को चलने दो |
* मिट रही हैं हसरतें मिटती रहें--जीवन को मरने दो ||
* घट रही है रोटियां घटती रहें---गेहूं को सड़ने दो |
* बँट रही हैं बोटियाँ बटती रहें-- नंगों को लड़ने दो |
* गल रही हैं चोटियाँ गलती रहें--- पानी को घटने दो |
* मिट रही हैं बेटियां मिटती रहे---बेटे को पढ़ने दो |
* घुट रही है बच्चियां घुटती रहें-- बर्तन को मलने दो ||
* लग रही हैं बंदिशें लगती रहें--- दौलत को बढ़ने दो |
* पिट रही हैं गोटियाँ पिटती रहें---रानी को चलने दो |
* मिट रही हैं हसरतें मिटती रहें--जीवन को मरने दो ||
3 टिप्पणियां:
बेहतरीन...
भावयुक्त और संदेश देती रचना।
सुन्दर लिखा है.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
एक टिप्पणी भेजें