रविवार, 18 सितंबर 2011

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती  रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी  हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
photo of a sugar ant (pharaoh ant) sitting on a sugar crystal
देख -गन्ने सी  सड़ी,  पेरी  गयी  इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो  रही हैं  चीटियाँ ||


हो  रही  बंजर  धरा, गौवंश  का  अवसान  है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||


भ्रूण  में  मरती  हुई  वो  मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का  मरोड़े  कांच की नव चूड़ियाँ |


हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां  दर  पीढियां, बढती  रहीं  दुश्वारियां  ||

15 टिप्‍पणियां:

Santosh Kumar ने कहा…

दर्दनाक हक़ीकत पेश करने की हिम्मत को सलाम!

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना

Unknown ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई

Atul Shrivastava ने कहा…

मौजूदा दौर की त्रासद स्थिति का चित्रण।

Vineet Mishra ने कहा…

Bahut marmik

Arvind Jangid ने कहा…

बेहतरीन रचना !

सत्य गौतम ने कहा…

शिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.

सत्य गौतम ने कहा…

शिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.

virendra sharma ने कहा…

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ
Mother's womb child,s tomb.Shame for modren tradition of female feticide.

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

marmik samvedna...kee anubhuti huyee ....yahee kvi karam hai..

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

marmik samvedna...kee anubhuti huyee ....yahee kvi karam hai..

Vivek Jain ने कहा…

दर्द से भरी रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

प्रिय रविकर जी अति सुन्दर जबाब नहीं ....सारे समाज का चित्रण अव्यस्था की हालत ....काश आँखें खुलें

भ्रमर ५

डा श्याम गुप्त ने कहा…

हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां दर पीढियां, बढती रहीं दुश्वारियां ||

----सुंदर भावाव्यक्ति ...

Rajesh Kumari ने कहा…

man ko udvelit karti kavita.