पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता ??
2 टिप्पणियां:
बहुत सार्थक.
रामराम.
सुन्दर कुण्डली छंद
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