रविवार, 8 सितंबर 2013

प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -

पर मेरी प्रस्तुति 

माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।

सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से । 
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से । 

देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता । 


प्रेम बुद्धि बल पाय,  मूर्ख रविकर क्यूँ माता  ??


2 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सार्थक.

रामराम.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सुन्दर कुण्डली छंद