संतुलित कहानी ... क्वालिटी ऑफ लाइफ ..
‘नीलेश, रात को कब आये, बड़ी देर करदी |’ सुबह
नाश्ते की मेज पर चंद्रकांत जी ने पूछा |
हाँ, पापा, आफिस में काम कुछ
अधिक था, तीन दिन से टूर पर रहने से काम इकट्ठा भी होगया था | कुछ कंपनियों के मर्जर के लिए भी मीटिंग में भी
काफी ‘डिफरेंस ऑफ ओपीनियन’ थी, अकाउंट्स में भी कुछ गडबडियां भी थीं | तर्क-वितर्क
व सैटिल करते-कराते काफी समय होगया | और रास्ते में ट्रेफिक जाम ने तो बस पूछिए ही
मत, हालत ही खराब करदी, सदा की तरह... एज यूज़ुअल |
‘हूँ, चंद्रकांत जी एक लंबी
सांस लेकर बोले, ‘आखिर क्या लाभ है इस सारी भाग-दौड का, दंद–फंद करने का,
अति-भौतिकता के पीछे भागने का | ये ऊंची-ऊंची इमारतें, बड़ी-बड़ी कंपनियां, एसी
मॉल-होटल कल्चर, भागम-भाग का जीवन| न खाने का समय न आराम का | क्या फर्क पड़ा है
मानव जीवन पर, इतनी वैज्ञानिक उन्नति-विकास के पश्चात भी मानव के जीवन में,
व्यवहार में कोई परिवर्तन आया है क्या ?’
‘अंतर तो आया है, इतना दिख तो रहा है |’ नीलेश ने प्रतिवाद
किया| ‘पहले बृक्षों–झोपडियों पर रहते थे अब आलीशान बंगलों-फ्लेटों में सुख-चैन से
व शान से रहते हैं| पहले जहां पैदल चलकर हफ़्तों-महीनों में पहुँचते थे अब वायुयान
में कुछ घंटे में | पहले चटाई पर सोते थे अब ८” मोटे गद्दे पर व एसी में आराम से
सुख-पूर्वक | पहले ढोलक बजाते थे अब होम-थियेटर में मस्ती करते हैं|
‘ये तो देश-काल, परिस्थिति के
अनुसार भौतिक सुख-साधन-भोग की स्थिति है| मानव तो वहीं का वहीं है | वही मानसिकता,
लड़ाई-झगड़े, द्वंद्व-द्वेष, मतभेद | पहले चोरी होती थी अब टैक्स-चोरी, पहले तलवार
से तो अब विचारों की तलवार से लड़ते-भिडते...काटते हैं| पहले चाकू-तलवार से तो अब गोली-बन्दूक
से, ट्रक से कुचलकर हत्याएं होती हैं | सुख-दुःख एक तुलनात्मक भाव हैं, स्थितियां
हैं | पहले जब सभी जमीन पर सोते थे सब बराबर थे|
अब असमानता बढ़ी, दुःख बढ़ा | सभी के पास चटाई ही थी, किसी को निद्रा-अनिद्रा
का दुःख नहीं, सब बराबर | किसी की चटाई कुछ अच्छी होती थी अपने को अधिक सुखी मान
लेता था | यही बात आज भी है | जो ८” के गद्दे पर सोता है वह ४” मोटे गद्दे वाले से
स्वयं को ऊंचा व् सुखी समझता है | जिस पर कार नहीं वह दुखी और जिस पर कार है वह भी
दुखी कि उस पर तीन कारें क्यों नहीं | कौन सुखी है......, “नानक दुखिया सब
संसार“ |’
चंद्रकांत जी कहने लगे |
‘क्यों सुखी नहीं हैं | आज का
आदमी एसी कार में सुखपूर्वक चलता है| अपने कार्य व व्यापार को शीघ्रता से व अधिकता
से कर सकता है | पहले बैलगाड़ी में गंतव्य स्थान पर एक माह में पहुंचते थे और
व्यापार करके महीनों में लौटते थे| अब वायुयान से एक घंटे में पहुंचकर उसे दिन
वापस लौट कर अपना काम-धंधा संभाल लेते हैं| व्यापार-व्यवसाय कितना बढ़ गया है,
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी | दुनिया की दूरियां घट गयी हैं अब तो मोबाइल पर ही आप
अपना कार्य-व्यापार कर लेते हैं |,’ बहू सुनीता कहने लगी |
‘ये सब आभासी हैं |’,
चंद्रकांत जी ने कहा,’ वास्तव में तो सभी शीघ्रातिशीघ्र अपना काम करना चाहते हैं |
गंतव्य पर पहुँचना चाहते हैं | पर तुलनात्मक रूप में देखें | उदाहरणार्थ ..मानलो
किसी को एक कांट्रेक्ट प्राप्त करना है | जो शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थान करेगा वही
पहले पहुंचेगा | चाहे दोनों युगानुसार बैलगाड़ी का उपयोग करें या वायुयान का | जो
दूसरे से पहले टिकट की लाइन में ( या नेट पर मोबाइल पर अथवा बैलों को जोडने) पहले नहीं
पहुंचा उसका यान छूट जाएगा और ठेका भी | भ्रष्ट उपायों की बात पृथक है जो इस
भागम-भाग के खाद-पानी में खूब तेजी से पैर पसारते हैं | अतः तुलनात्मक लाभ-हानि तो
वही रही न, जो अधिक व त्वरित श्रम-संकल्प करेगा वही जीतेगा | दौड चाहे इक्के की हो
या वायुयान की |’
’ वास्तव में तो मानवता व जीवन
प्रफुल्लता का ह्रास हुआ है |’ वे पुनः कहने लगे, ‘जो आदमी साधारण कुर्ता-पायजामा
में खुश था आज सूट में भी खुश नहीं है | अब उसे १००००/ का सूट चाहिए | पहले एक ही नौकरी, काम-धंधा कर लिया,
खाने-पीने को और खुश| आज एक-एक लाख सेलेरी मिलती है पर घर देखने की फुर्सत नहीं,
स्वयं के लिए, मनोरंजन, परिवार के लिए समय नहीं| खाने-पीने का कोई क्रम नहीं| सभी
सुख-साधन हैं परन्तु कौन उपयोग-प्रयोग-भोग कर पा रहा है?’
‘परन्तु क्वालिटी आफ
लाइफ तो बढ़ी है|’ नीलेश कहने लगा, ‘पहले पेड पर, टपकती हुई झोंपडी में
भीगते थे अब आराम से पक्की छत के नीचे बरसात का आनंद लेते हैं|’
हाँ, ...’बट फॉर
क्वालिटी आफ लाइफ वी आर एन्डेजरिंग द लाइफ इटसेल्फ’ ...नव जवान इतनी कम
उम्र में ही इतनी अधिक सेलेरी पाते हैं, परन्तु सिर के सारे बाल गायब होकर असमय ही
वृद्ध नज़र आते हैं | अपने पितृ-जनों से भी अधिक वुजुर्ग लगते हैं | दिनभर विद्युत
के प्रकाश में कम्प्युटर पर कार्य, एसी में रहना, फ्रिज का बासी खाना, वायुयान में
अधिकाँश घूमते रहना, देशभर में व्यापार या कंपनी की सेवा में, रात में चैन से सोना
नहीं | न खाने का समय, न खेलने का-घर
देखने का | और.....
“घर को सेवे,
सेविका, पत्नी सैवे अन्य |
छुट्टी लें तब मिल सकें,
सो पति-पत्नी धन्य |”
और क्वालिटी का अंदाज़ यह है कि ...खेल के लिए २०००-२००० के जूते, ५००० का
स्विम सूट- ड्रेस, एंजोयमेंट-मस्ती के लिए नब्बे-हज़ार का होम-थ्येटर वह भी हफ्ते-दो हफ्ते में एक बार के लिए| आखिर लाइफ है
कहाँ ?
2 टिप्पणियां:
sateek .....aabhar
धन्यवाद ..शिखाजी
एक टिप्पणी भेजें