बेटियाँ कैसे बचेंगी
समाचार पत्रों की सुर्खियाँ और मन में उठते हजार सवाल ………… कैसे सुरक्षित रहेंगी हमारी बेटियाँ ?
संतों की यह भूमि दागदार हो गयी एक संत के कारण , यदि हम मान भी ले कि ये साजिश हो तो भी सवाल ये है कि संत ने अकेले कमरे में लड़की का उपचार क्यों किया जबकि उनमे शक्ति है तो वे सबके सामने भी कर सकते थे । आशाराम बापू की आत्मा क्या स्वयं को नहीं धिक्कारती होगी जो ऐसे गुनाह उनके ऊपर लगे?
सवाल ये नहीं है कि महान संत पर आज इल्जाम लगा है , बल्कि ये है कि यदि उन्होंने गलती नहीं की है तो भागते क्यों है ? आत्मसर्पण कर समाज के सामने सच्चाई लाते, अपनी बेगुनाही का सबूत देते ?
पतन की ओर जाते हमारे समाज को पुनः सभ्य बनाने जरुरत की है। आज हर घर को जगाने की जरुरत है , एक आदमी के कारण पुरे समाज को दोष नहीं दिया जा सकता लेकिन तेजी से बढ़ रही दुराचार की घटनाओं को नजरंदाज भी नहीं किया जा सकता। राह चलती लड़कियों को गिद्ध की दृष्टि से देखनेवालों की कमी नहीं है पर बेटियों की सुरक्षा सबसे अहम है। हमें जागना होगा, उन सभी जानवरों से सचेत रहना होगा जिनकी बदनीयती समाज में कलंक के रूप में उभर रही हैं। घर से लेकर बाहर तक राक्षस भरे पड़े हैं , ऐसे में उनसे बचना भी एक समस्या ही है फिर भी हमें सचेत होकर मुकाबला करना होगा।
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार -02/09/2013 को
मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
YOU HAVE WRITTEN VERY RIGHT .ASARAM HAS DONE VERY WRONG .SHAME ON HIM .
ये घोर कलयुग है वर्तमान समय में किसी पर भी विश्वास नही किया जा सकता क्योंकि आज के समय में हर कोई एक दूसरे का साथ अपने स्वार्थ के लिए देता है, वर्तमान समय में तो लड़कियां अपने घर में ही सुरक्षित नही हैं बाहर क्या खाक सुरक्षित रहेंगी? आज कल हर कोई लड़कियों को अपनी हवस मिटाने का जरिया समझते है ................. और बहुत कुछ कहना था पर समय की कमी के कारण नहीं कह पा रहा हूँ इसके लिए माफ कीजिएगा।
नारी के प्रति सम्वेदना प्रेरणाप्रद !
ये सबके सब आशाराम।
मत करना तुम इन्हें सलाम।
बगुलन के चाचाजी हैं ये ,
नेता करते इन्हें प्रणाम।
ये सबके सब आशाराम।
वीरुभाई (कैंटन ,मिशिगन )
------आशारामों को आशाराम कौन बनाता है.....नारियां ही सबसे आगे रहती हैं साधू-संतों के पास जाने में ...पुरुष इन पर अधिक विश्वास नहीं करते ...नारियां ही अंधविश्वासों को अधिक ढोती हैं .
--- उस लड़की की मां क्यों गयी आशाराम के पास, क्यों बाहर बैठकर लड़की को अन्दर भेज दिया .... ( लड़की स्वयं भी १६ वर्ष की युवती थी क्यों भ्रम में पडी )...
--- अपनी अज्ञानता , अंधविश्वास एवं लालच का फल भोगते हैं हम....
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