सूनी सब गलिया पडीं,अब कित रंग तरंग |
बस कविता औ ब्लॉग पर, दिखते होली-रंग ||
बाट जोहता सुबह से, कोई तो आजाय |
होरी है कहता हुआ, मुख पे रंग लगाय |
नल में पानी है नहीं, कैसे रंग घुल पाय |
सूखे सूखे ही चलो अब रंग लेउ उड़ाय |
घर से निकले सोचते, लौटें भीगे अंग |
अपने अपने मस्त सब,लौटे हम बेरंग |
घूरत ही पूरे भये, तुरत बीस सेकिंड |
अब रंग कैसे डालते, कानूनी प्रतिबन्ध |
घूरन की का जरूरत, दो क्षण रंग उड़ाय |
हाथ जहां चाहे परे, बस रंग देऊ चढ़ाय |
2 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत रचना म होली के रंगों से सरोबर।आपको होली की ढेरों शुभकामनाए
धन्यवाद शिखा जी,,नूतन जी व राजपूत जी....
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