मैं जननी हूँ
अपना सब कुछ
उड़ेल दिया
तुम पर
पर मैं
रिक्त नहीं हुई
बल्कि
मैं खुद को
भरा-भरा सा
महसूस करती हूँ
क्या करूँ
मेरी प्रकृति ही
ऐसी है
कि खाली को
भरकर ही
मैं तृप्त होती हूँ
मैं जननी हूँ
मैं देवों से भी
बड़ी होती हूँ ∙
11 टिप्पणियां:
sarthak prastuti .is blog par aapka hardik swagat hai .
utam-**
very right sarika ji .
आप सभी का हार्दिक आभार!
होली पर अग्रिम शुभकामनाएँ!
सप्रेम,
सारिका मुकेश
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरेया-
Vah Kya baat Hain ji http://www.irworld.in/
बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति सुन्दर भाव लिए,सादर आभार.
सुंदर...
मेरी प्रकृति ही
ऐसी है
कि खाली को
भरकर ही
मै तृप्त होती हूँ
-------------------
सुन्दर शब्द ...अनहद भाव ....
सार्थक है ...पर वो कभी अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करती .....
--- इसे अन्य बचन में लिखें ...और सार्थक हो...
एक टिप्पणी भेजें