बदनाम जिन्दगी ...दर्दनाक मौत !
नैना ; भंवरी ,फिज़ा हो या
नैतिकता ; मर्यादा ; शुचिता ,
इन सबका दारोमदार है स्त्री पर
फिर कैसे पार करती है वो लक्ष्मण रेखा ?
अग्नि परीक्षा देते शायद
हर अगली ने पिछली सीता को नहीं देखा .
पुरुष सत्ताक समाज के बंधन
तोड़ने के लिए ;
बन जाती है पुरुष ही के हाथ का खिलौना ,
अपनी खूबसूरत जिन्दगी को क्यों
बना डालती है स्त्री घिनौना ?
नैना ; भंवरी ,फिज़ा हो या
हो कविता -मधुमिता ,
पुरुष के हाथ की कठपुतली बन
शीश पुरुष -चरणों में ही क्यों झुकता ?
महत्वाकांक्षाओं का गगन छूने के लिए
क्या जरूरी था पुरुष का सहारा ?
वो खेलता रहा तुमसे ..तुम ही हारी सदा
वो कभी ना हारा .
बदनाम जिंदगी ..दर्दनाक मौत
का रास्ता तुमने ही चुना ,
पर एक प्रश्न तो अनुत्तरित ही रहा ,
नारी की गरिमा गिराने का हक़ जब
पुरुष तक को नहीं फिर नारी
को किसने दिया ?
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
पुरुष सत्ताक समाज के बंधन
तोड़ने के लिए ;
बन जाती है पुरुष ही के हाथ का खिलौना ,
अपनी खूबसूरत जिन्दगी को क्यों
बना डालती है स्त्री घिनौना ?
पुरुष सत्ताक समाज के बंधन
तोड़ने के लिए ;
बन जाती है पुरुष ही के हाथ का खिलौना ,
अपनी खूबसूरत जिन्दगी को क्यों
बना डालती है स्त्री घिनौना ?राजनीति के साए में प्रेम कब पला परवान चढ़ा है ,भूलों का ही एक सिलसिला है ...दुखद पहलु है यह चमक मरीचिका के पीछे भागती ज़िन्दगी का ,कृपया पुरुष सत्तात्मक समाज कर लें ... कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
मंगलवार, 7 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
मार्मिक ||
ज्यादा महत्वाकांक्षी होना ही लक्ष्मण रेखा को लांघने के लिए मजबूर करती है ,या कभी कभी खुद को साबित करने में बन जाती हैं किसी के हाथों की कठपुतलियां .........
veerubhai ji ,ravikar ji v rajni ji -aap sabhi ka aabhar
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
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