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शठ शोषक सुख-शांत से, पर पोषक गमगीन |
आखिर तुझको क्या मिला, स्वयं जिन्दगी छीन |
आखिर तुझको क्या मिला, स्वयं जिन्दगी छीन |
स्वयं जिन्दगी छीन, खून के आंसू रोते |
देखो घर की सीन, हितैषी धीरज खोते |
दोषी रहे दहाड़, दहाड़े माता मारे |
ले कानूनी आड़, बचें अपराधी सारे ||
दो दो हरिणी हारती, हरियाणा में दांव |
हरे शिकारी चतुरता, महत्वकांक्षा चाव |
हरे शिकारी चतुरता, महत्वकांक्षा चाव |
महत्वकांक्षा चाव, प्रेम खुब मात-पिता से |
किन्तु डुबाती नाव, कहूँ मैं दुखवा कासे |
9 टिप्पणियां:
dukhad.sarthak prastuti.
sateek v samyik prastuti .aabhar
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
राजनीति के आश्रय में कभी प्रेम पल्लवित नहीं हो पाता .बड़ा दुखद रहा यह प्रसंग .एक महत्व कांक्षा का अंत .
सोमवार, 6 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ सेविकर भाई बड़ा ही दुखद रहा है यह प्रसंग .राजनीति के आश्रय में कभी प्रेम पल्लवित नहीं हो पाता .
सटीक !
प्रासंगिक एवं सटीक ....
हरियाणा में लुट गई, बालाओं की लाज।
राजनीति की चाल में, बन्धक आज समाज।।
सामयिक सार्थक.
सटीक और प्रासंगिक... वाह!
सादर.
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