शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

बचपना -एक लघु कथा



बचपना -एक लघु कथा 
google se sabhar 

एक वर्ष हो गया सुभावना के विवाह को ,मेरी पक्की सहेली . बचपन से दोनों साथ -साथ स्कूल जाते ,हँसते ,खेलते पढ़ते .कभी मेरे नंबर ज्यादा आते कभी उसके लेकिन दोनों को एक दूसरे के नंबर ज्यादा आने पर बहुत ख़ुशी होती .एक बार मैं तबियत ख़राब होने  के कारण स्कूल नहीं जा पाई तब सुभावना ही रोज मेरे घर आकर मेरा काम किया करती थी ।हमारे मम्मी पापा की भी अच्छी बनती थी ।जब भी हमारे मम्मी पापा बाहर  जाते हम बिना किसी संकोच के एक दूसरे के घर रह लेते थे .सुभावना के दो छोटी बहने और थी इसलिए उसके मम्मी पापा चाहते थे कि अच्छा घर मिलते ही उसके हाथ पीले कर दे .यद्यपि मैं सुभावना से अलग होने की सोचकर भी घबरा जाती थी ,लेकिन उसके मम्मी पापा की चिंता भी देखी  नहीं जाती थी.मम्मी इस बार नैनीताल गयी तो लौटकर आते ही मेरे साथ सुभावना के घर गयी । मम्मी ने उसके मम्मी पापा को एक तस्वीर दिखाई और बोली ''ये लड़का दुकानदार है पर  अच्छी इनकम हो जाती है ,सुभावना से कुछ साल बड़ा है पर शादी करना चाहे तो कर दे लड़का शरीफ है .'उसके मम्मी पापा को लड़का पसंद आ गया और जब हमारे इंटर के पेपर हो गए तब जून माह में सुभावना का विवाह हो गया .उसकी विदाई पर मैं और वो गले लगकर खूब रूए .पिछले माह उसकी मम्मी हमारे यहाँ आई .मिठाई का डिब्बा उनके हाथ में था .वे बोली ''सुभावना के बेटा हुआ है ''..यह खबर पाकर हम ख़ुशी से झूम उठे.उन्होंने बताया कि सुभावना एक माह बाद यहाँ आएगी .मेरी   बी ए  प्रथम वर्ष की  परीक्षाएं  भी पूरी होने आ गयी थी .मैं बेसब्री से उसके आने का इन्तजार करने लगी .कल उसकी छोटी बहन हमारे घर आकर बता गयी कि ''सुभावना आ गयी है ''मेरा मन था कि अभी चली जाऊ पर मम्मी ने कहा कि कल को चलेगे  .आज  जब सुभावना के घर पहुची तब उसे पहचान नहीं पाई .कितनी अस्त-व्यस्त सी लग रही थी .करीब एक घंटे तक बस ससुराल की बुराई करती रही .मम्मी के कहते ही कि ''चल' मैं तुरंत चल पड़ी वर्ना एक एक मिनट कहकर मैं एक घंटा लगा देती थी .उसके घर से लौटते समय मैं समझ चुकी थी कि सुभावना का बचपना खो चुका  है और वो भी जिन्दगी को समझने लगी है .

8 टिप्‍पणियां:

virendra sharma ने कहा…

.उसकी विदाई पर मैं और वो गले लगकर खूब रूए .पिछले माह उसकी मम्मी हमारे यहाँ आई .मिठाई का डिब्बा उनके हाथ में था .वे बोली ''सुभावना के बेटा हुआ है ''..यह खबर पाकर हम ख़ुशी से झूम उठे.उन्होंने बताया कि सुभावना एक माह बाद यहाँ आएगी .मेरी बी ए प्रथम वर्ष की परीक्षाएं भी पूरी होने आ गयी थीबढ़िया लघु कथा सन्देश साफ़ है जीवन साथी माफिक न आये तो रूपांतरण और कायांतरण दोनों ही हो जातें हैं . .. कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 25 अगस्त 2012
आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html

shashi purwar ने कहा…

sundar bachapan masoom hota hai

Shikha Kaushik ने कहा…

tippani hetu aabhar shashi ji

alka mishra ने कहा…

शादियां सारा व्यक्तित्व बदल देती हैं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

Shalini kaushik ने कहा…

NICE PRESENTATION .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शादी के साथ ही बहुत कुछ बदल जाता है ...

डा श्याम गुप्त ने कहा…

कहानी घर घर की.....