- प्रेम प्रकाश
संबंधों
के मनमाफिक निबाह को लेकर विकसित हो रही स्वच्छंद मानसिकता और पैरोकारी के
ग्लोबल दौर में जिस एक चीज को लेकर सबसे ज्यादा संदेह और विरोध है, वह है
प्रेम। इन दो विरोधाभासी स्थितियों को सामने रखकर ही मौजूदा दौर की देशकाल
और रचना को समझा जा सकता है। हाल में अखबारों में ऑनर किलिंग के दो मामले
आए। इनमें एक घटना बुलंदशहर और दूसरी मेरठ की है। ये मामले एक ही राज्य
उत्तर प्रदेश के हैं पर ऐसी घटनाएं हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार
या दिल्ली समेत देश के किसी भी सूबे में हो सकती हैं।
बुलंदशहर वाले
मामले में प्रेमिका की आंखों के सामने उसकी ही चुन्नी से प्रेमी का सरेआम
गला घोंट दिया गया। जान युवती की भी शायद ही बच पाती पर शुक्र है कि
ग्रामीणों ने हत्यारों को घेर लिया। मेरठ में तो युवक की हत्या युवती के घर
पर पीट-पीटकर कर दी गई। मामला कहीं न कहीं प्रेम प्रसंग का ही था। अभी
'सत्यमेव जयते' नाम से अभिनेता आमिर खान जो चर्चित टीवी शो पेश कर रहे हैं,
उसके पिछले एपिसोड में भी इस मसले को उठाया गया था। कार्यक्रम में लोगों
ने एक बार फिर देखा-समझा कि हमारा समय और समाज युवकों की अपनी मर्जी से
शादी के फैसले के कितना खिलाफ है। यह विरोध कितना बर्बर हो सकता है, इसके
लिए आज किसी आपवादिक मामले को याद करने की जरूरत भी नहीं। आए दिन ऐसा कोई न
कोई मामला अखबारों की सुर्खी बनता है।
ऐसे में हमारी समाज रचना और
दृष्टि को लेकर कुछ जरूरी सवाल खड़े होते हैं, जिनका सामना किसी और को
नहीं बल्कि हमें ही करना है। पहला सवाल तो यही कि जिस पारिवारिक-सामाजिक
प्रतिष्ठा के नाम पर नौजवान प्रेमियों पर आंखें तरेरी जाती हैं, उस
प्रतिष्ठा की रूढ़ अवधारणा को टिकाए रखने वाले लोग कौन हैं? समझना यह भी
होगा कि स्वीकार की विनम्रता की जगह विरोध की तालिबानी हिमाकत के पीछे कहीं
पहचान का संकट तो नहीं है? क्योंकि यह संकट उकसावे की कार्रवाई से लेकर
हिंसक वारदात तक को अंजाम देने की आपराधिक मानसिकता को गढ़ने वाला आज एक
बड़ा कारण है।
मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक; हर रोज
ऐसी करतूतें सामने आती हैं, जब लोगों की दिमागी शैतानी लोकप्रियता की भूख
में शालीनता और सभ्यता की हर हद को तोड़ने के तपाकीपन दिखाने पर उतारू हो
जा रही है। समाज वैज्ञानिक बताते हैं कि समाज का समरस और समन्वयी चरित्र जब
से व्यक्तिवादी आग्रहों से विघटित होना शुरू हुआ है, परिवार और परंपरा की
रूढ़ पैरोकारी का प्रतिक्रियावादी जोर भी बढ़ा है। इसका प्रकटीकरण
पढ़े-लिखे समाज में जहां ज्यादा चालाक तरीके से होता है, वहीं अपढ़ और
निचले सामाजिक तबकों में ज्यादा नंगेपन में दिखाई दे जाता है। वैसे प्रेम
को लेकर तेजाबी नफरत दिखाने के पीछे यह अकेला कारण नहीं है। हां, एक
विलक्षण और सामयिक केंद्रीय कारण जरूर है।
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