[क्यूट बेबी से साभार ]
क्यूँ किया पता हे ! मात-पिता?
कि कोख में मैं एक कन्या हूँ.
उस पर ये गर्भ पात निर्णय
सुनकर मैं कितनी चिंतित हूँ?
हाँ !सुनो जरा खुद को बदलो
मैं ऐसे हार न मानूगीं;
हे! माता तेरी कोख में अब
मैं बेटी का हक़ मागूंगी !
बेटी के रूप में जन्म लिया;क्यूँ देख के मुरझाया चेहरा;
मैं भी संतान तुम्हारी हूँ;
फिर क्यूँ छाया दुःख का कोहरा
लालन पालन मेरा करके
मुझको भी जीने का हक दो
मैं करुं तुम्हारी सेवा भी
ऐसी मुझमे ताक़त भर दो
बेटी होकर ही अब मैं तुमसे
बेटो जैसा हक मांगूगी
हे माता! तेरी कोख में अब
मैं बेटी का हक मांगूगी.
शिखा कौशिक
4 टिप्पणियां:
बहुत प्यारी व् सार्थक सन्देश देती कविता.शिखा जी आभार
गुरुजनों को सादर प्रणाम ||
सुन्दर प्रस्तुति पर
हार्दिक बधाई ||
सुंदर रचना !!!वाह !!
हाँ !सुनो जरा खुद को बदलो
मैं ऐसे हार न मानूगीं;
हे! माता तेरी कोख में अब
मैं बेटी का हक़ मागूंगी !
जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
लिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
आइये शुक्रवार को भी --
http://charchamanch.blogspot.com/
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