बुआ -कहानी
बुआ -कहानी |
बुआ के साथ रहने का अलग ही आकर्षण था .कहाँ शहर का कोलाहल भरा वातावरण और कहाँ बुआ के गाँव में चारों ओर शांत -सुहाना वातावरण .वैसे तो हम चारों भाई -बहनों को बुआ समान रूप से स्नेह करती क्योंकि हम उनके एकलौते भाई की संतान थे पर मुझ पर बुआ का विशेष स्नेह था क्योंकि मैं सब भाई बहनों में सबसे छोटा था .बुआ ने समाज सेवा का व्रत लिया था इसीलिए एम्.बी.बी.एस. करते ही गाँव में अपना क्लिनिक खोला था ..पिता जी के तगड़े विरोध के बावजूद .विवाह के लिए भी वे तैयार नहीं हुई थी ...पर ये सब मुद्दे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते थे क्योंकि मुझे तो माँ से भी बढ़कर बुआ अच्छी लगती थी .बुआ को जब भी फुर्सत मिलती तब शहर हमारे पास अवश्य आती .पिता जी से कम बात होती और हमारे साथ खेलने में ज्यादा मगन रहती .जब भी आती मंजू दीदी व् प्रीती दीदी के लिए उनकी रुचि की चीज़ें लाती और पिंटू भैय्या व् मेरे लिए ढेर सारे खिलौने .मेरे लिए मेरी पसंद की चौकलेट व् टॉफी लाना भी बुआ कभी नहीं भूलती थी .धीरे-धीरे बड़े होते हुए मैंने भी बुआ की तरह डॉक्टर बनने का निश्चय किया .बुआ के मार्गदर्शन से मैंने हर बार अच्छे अंको से हर परीक्षा उत्तीर्ण की . एम्.बी.बी.एस. कर लेने के बाद मेरे सामने धर्म-संकट खड़ा हो गया .बुआ की इच्छा से मैं भली-भांति परिचित था कि मैं गाँव उनके पास रहकर उनके क्लिनिक को ज्वाइन करूँ पर घर की आर्थिक स्थिति व् जवान हुई बहनों के विवाह की चिंता के कारण मेरा लक्ष्य अधिक से अधिक धन कमाकर पिता जी को सहारा देना बन गया था .बुआ से सलाह व् समर्थन लेना चाहता था . लेकिन पिता जी ने पहले ही फैसला सुना दिया और कड़े स्वर में कहा -'' दिनेश मैंने तुम्हारे लिए क्लिनिक का इंतजाम यही शहर में कर दिया है ..यही रहो और उन्नति करो .''बुआ पिता जी के इस निर्णय से बहुत नाराज़ हुई क्योंकि इसके बाद उनका हमारे पास आना-जाना लगभग बंद हो गया और फोन द्वारा भी संपर्क टूट गया .पिंटू भैय्या ने रेडीमेट गारमेंट्स की दुकान कर ली थी और मैंने चिकित्सा की .हाँ ! यही लगा था मुझे बुआ के अनुसार गाँव न जाकर शहर में क्लिनिक पर पहली बार जाते हुए .जैसी की पिता जी को उम्मीद थी मैं उतनी ज्यादा कमाई इस पेशे से नहीं कर पाता था क्योंकि मैं अपने मरीजों को लूट नहीं सकता था .मंजू दीदी व् प्रीती दीदी की शादी में भी बुआ नहीं आई .दोनों बार मनी ऑडर द्वारा शुभकामनायें प्रेषित कर दी .पिता जी भी अपने जिद्दी स्वभाव के कारण उन्हें मनाने नहीं गए गाँव . मैं भी इतना व्यस्त रहता था कि बुआ के पास जाने के लिए समय नहीं निकाल पाता था ...सच कहूं तो उनके पास जाने की हिम्मत ही नहीं थी .पिंटू भैय्या के विवाह के अवसर पर मैंने डायरी से बुआ का पोस्टल एड्रेस निकाल कर विशेष आग्रह के साथ ''जरूर आना है '' की विनती भरी चिट्ठी लिखी .चिट्ठी का जवाब तो आया लेकिन पिंटू भैय्या की शादी हो जाने के बाद .बुआ ने लिखा कि वे व्यस्त रहती हैं अत: आ नहीं पाती .मैं जानता था उनकी व्यस्तता .मैंने निश्चय किया कि इस रविवार को बुआ के पास जरूर जाऊंगा .पिता जी भी चाहते थे कि बुआ की नाराज़गी दूर हो जाये .मैं रविवार को सुबह साढ़े छह बजे की बस पकड़कर उनके गाँव के लिए रवाना हो लिया .रास्ते भर बस यही सोचता रहा कि बुआ क्या अब भी उतने प्यार से मुझसे मिलेगी जबकि मैंने उनका दिल तोडा है ? उन्होंने मुझे डॉक्टर बनाने के लए कितनी भाग-दौड़ की और मैंने डॉक्टर बनते ही उनके सपने चकनाचूर कर दिए .कितनी उत्साहित थी वे मेरे डॉक्टरी की ओर बढ़ते क़दमों को देखकर .उत्साहित होकर कहती -'' अब मेरी क्लिनिक में एक और काबिल डॉक्टर आ जायेगा .कितनी ही अनमोल जान बचाई जा सकेगी जो यहाँ चिकित्सकों की कमी के कारण चली जाती हैं .''पूरे साढ़े तीन साल हो गए थे बुआ से ना मिले .बस रुकी , मैंने अपना बैग कंधें पर टांगा व् ब्रीफकेस उठाकर बुआ के क्लिनिक की ओर चल दिया क्योंकि मैं जानता था कि वे वही होंगी .रास्ता मेरा जाना-पहचाना था .हजारो बार बुआ के साथ उनके क्लिनिक पर गया था मैं .बुआ के क्लिनिक पर पर पहुँचते ही पाया कि ये अब तक वैसा का वैसा ही है .बुआ मुझे देखते ही खड़ी हो गयी और विस्मित होकर बोली -'' अरे ....दिनेश तुम ?'' मैंने आगे बढ़कर चरण स्पर्श करते हुए कहा -'' बुआ दिनेश कहकर पराया मत करो मैं तो आपका गुड्डू हूँ ...वही छोटा सा गुड्डू .'' बुआ की आँख भर आई आंसू पोछते हुए बोली -'' हाँ हाँ ..मेरा गुड्डू !! '' वे मुझे घर ले गयी .फ्रेश होने के बाद मैंने बुआ से पूछा -'' बुआ अब भी नाराज़ हो मुझसे ?'' बुआ मुस्कुराई और बोली -'' अरे अपने बच्चों से कोई नाराज़ होता है ?..लेकिन हाँ मैंने तुम्हे इसलिए डॉक्टर नहीं बनाया था कि तुम इसे एक व्यवसाय बनाओ ...मैं चाहती थी तुम मेरे इस क्लिनिक को संभालो और इस पेशे को पूजा का सम्मान दो .मेरे इस क्लिनिक से भी इतना पैसा तो मेरे पास आ ही जाता है जिससे मैं ठीक से खा-पहन सकूं और सेवा कार्य भी कर सकूं .लेकिन तुमने भैय्या की .....चलो वैसे भी मेरा कौन सा अधिकार है तुम पर जो तुम मेरे कहे अनुसार चलते ?''मैं भावुक हो उठा और बोल -'' बुआ ..प्लीज़ ऐसा मत कहो .मैं इस बार जाकर पिता जी से साफ कह दूंगा कि मुझे आपके पास यही रहकर सेवा कार्य करना है .'' बुआ ने मुझे गले से लगा लिया .शहर पहुंचकर मैंने पिता जी को अपना निश्चय सुना दिया और यह भी बता दिया कि मैं और अपनी आत्मा के साथ धोखा नहीं कर सकता .पिता जी शायद बुआ के अहसानों के कारण इस बार ना नहीं कर पाए .अब जब बुआ इस दुनिया में नहीं हैं तब उनके क्लिनिक में बैठा हुआ मैं अक्सर सोचा करता हूँ कि मैंने वो निर्णय लेकर कितना सही कदम उठाया था .
शिखा कौशिक 'नूतन '
3 टिप्पणियां:
्संदेशपरक कहानी
बढ़िया है आदरेया-
अच्छी कहानी
मैने आज ही ब्लाग बनाया है।
कभी देखिएगा।
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