शनिवार, 13 जुलाई 2013

पावस गीत ---क्या हो गया....डा श्याम गुप्त......

पावस गीत ---क्या हो गया..

इस प्रीति की बरसात में ,
भीगा हुआ तन मन मेरा |
कैसे कहें, क्या होगया,
क्या ना हुआ, कैसे कहें ||

चिटखीं हैं कलियाँ कुञ्ज में ,
फूलों से महका आशियाँ |
मन का पखेरू उड़ चला,
नव गगन पंख पसार कर ||

इस प्रीति स्वर के सुखद से,
स्पर्श मन के गहन तल में |
छेड़  वंसी के स्वरों को,
सुर लय बने उर में बहे ||

बस गए हैं  हृदय-तल  में,
बन, छंद बृहद साम के |
रच-बस गए हैं प्राण में
बन करके अनहद नाद से ||

कुछ न अब कह पांयगे,
सब भाव मन के खोगये |
शब्द, स्वर, रस, छंद सारे-
सब तुम्हारे ही  होगये ||

अब हम कहैं या तुम कहो,
कुछ कहैं या कुछ ना कहैं |
प्रश्न उत्तर भाव सारे,
प्रीति रस में ही खोगये ||
 

5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sundar

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

वाह क्या बात है ...

Aditi Poonam ने कहा…

सुंदर बरसाती रचना.....
साभार.....

बेनामी ने कहा…

bahut sundar

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अदिति जी,शालिनी,शिखा,विजय जी,एवं प्रेम के फूल ,,,,,