(यह घटना पूर्णतः सत्य हैं, बस नाम और स्थान बदले हुए हैं | इसे ध्यान से पढ़ें और कृपया अपनी राय दें )
3 सहेलिया थी, आशा, अरुणा और कल्पना | तीनों एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़ रही थी | तीनों की उम्र करीबन 20-22 वर्ष थी | तीनों को ट्रेनिंग के लिए 2 महीने के लिए किसी अन्य शहर में जाना पड़ा | वहाँ उन्होने 1 BHK फ्लेट किराए पे लिया और उसमे रहकर ट्रेनिंग करने लगी | तीनों एक ही कमरे मे रहती थी, साथ ही खाना बनती थी, खाती थी एवं साथ ही हर जगह आना जाना करती थी |
कुछ दिनों बाद अचानक कल्पना की तबीयत खराब हो गई | उसी बीच आशा के पिताजी(महेश जी, उम्र करीब 45-50 वर्ष) तकरीबन 10 बजे वहाँ पाहुचे अपनी बेटी से मिलने | तीनों सहेलियों ने उनका पैर छूकर अभिवादन किया | महेश जी ने भी तीनों को एक-एक करके गले लगा लिया | 12 बजे के करीब आशा और अरुणा रसोई में खाना पीना बनाने चली गई | महेश जी कमरे मे ही बैठ कर अखबार पढ़ रहे थे और कल्पना तबीयत खराब होने की वजह से लेटी थी और फिर उसकी आँख भी लग गई |
इसी बीच महेश जी अखबार पढ़ना छोड़ कल्पना के पास बेड मे आके बैठ गए | कल्पना को गहरे नींद में सोई देख महेश जी ने उसके सर पर हाथ फिराया | फिर कुछ ही देर बाद उनका हाथ धीरे धीरे नीचे उतारने लगा | फिर वो कल्पना के शरीर में यहाँ-वहाँ हाथ लगाने लगे | तबीयत ठीक न होने की वजह से कल्पना गहरे नींद में थी पर अपने शरीर मे दबाव महसूस कर उसकी नींद झटके से उड़ गई | सब कुछ समझने के बाद उसके हिम्मत नहीं हुई आँख खोलने की | उसने सोये सोये ही महेश जी का हाथ अपने शरीर से हटा दिया और वो करवट बदलकर सोई ही रह गई, जैसे कि वो नींद से जगी ही न हो | महेश जी उसके बाद वापस जाकर अखबार पढ़ने लगे |
इस घटना के बाद भी महेश जी लगभग 5 बजे तक वहाँ रहे | पर इस बीच कल्पना एक मिनट के लिए भी बेड से उठी नहीं, सोने का दिखावा करती रही | ये अलग बात है कि 1 सेकंड के लिए भी उसकी आँख लग नहीं पाई | वो कुछ नहीं बोली इसके पीछे कई कारण थे | एक तो उसे उस समय समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे क्या न करे, दूसरा डर, बदनामी का डर, आशा से रिश्ता खराब होने का डर, कैरियर खत्म हो जाने का डर |
उस घटना के बाद कल्पना खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश करती रही पर अंदर से वो बिलकुल ही डरी हुई, घबराई हुई थी और 2-3 दिन तक तो खा भी नहीं पाई ठीक से न ही उसे नींद आई | उसे सामान्य होने में लगभग पूरा सप्ताह लग गया पर मन में एक डर हमेशा हमेशा के लिए घर कर गया |
ये घटना इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है, बंद कमरे या कई जगह न जाने इस तरह की की कितनी ही घटनाएँ घटती हैं आए दिन | पर सवाल ये उठता है कि आखिर महेश जी जैसे लोग हैं कौन ? कितनों कि संख्या में हैं हम-आपके बीच ? ये समस्या आखिर है क्या और इसका निवारण क्या है ? मुझे अपने आप में इन प्रश्नों का कोई ठोस जवाब नहीं मिला इसलिए आप सबके समक्ष इसे रखा और आप सबकी राय कि अपेक्षा है |
3 सहेलिया थी, आशा, अरुणा और कल्पना | तीनों एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़ रही थी | तीनों की उम्र करीबन 20-22 वर्ष थी | तीनों को ट्रेनिंग के लिए 2 महीने के लिए किसी अन्य शहर में जाना पड़ा | वहाँ उन्होने 1 BHK फ्लेट किराए पे लिया और उसमे रहकर ट्रेनिंग करने लगी | तीनों एक ही कमरे मे रहती थी, साथ ही खाना बनती थी, खाती थी एवं साथ ही हर जगह आना जाना करती थी |
कुछ दिनों बाद अचानक कल्पना की तबीयत खराब हो गई | उसी बीच आशा के पिताजी(महेश जी, उम्र करीब 45-50 वर्ष) तकरीबन 10 बजे वहाँ पाहुचे अपनी बेटी से मिलने | तीनों सहेलियों ने उनका पैर छूकर अभिवादन किया | महेश जी ने भी तीनों को एक-एक करके गले लगा लिया | 12 बजे के करीब आशा और अरुणा रसोई में खाना पीना बनाने चली गई | महेश जी कमरे मे ही बैठ कर अखबार पढ़ रहे थे और कल्पना तबीयत खराब होने की वजह से लेटी थी और फिर उसकी आँख भी लग गई |
इसी बीच महेश जी अखबार पढ़ना छोड़ कल्पना के पास बेड मे आके बैठ गए | कल्पना को गहरे नींद में सोई देख महेश जी ने उसके सर पर हाथ फिराया | फिर कुछ ही देर बाद उनका हाथ धीरे धीरे नीचे उतारने लगा | फिर वो कल्पना के शरीर में यहाँ-वहाँ हाथ लगाने लगे | तबीयत ठीक न होने की वजह से कल्पना गहरे नींद में थी पर अपने शरीर मे दबाव महसूस कर उसकी नींद झटके से उड़ गई | सब कुछ समझने के बाद उसके हिम्मत नहीं हुई आँख खोलने की | उसने सोये सोये ही महेश जी का हाथ अपने शरीर से हटा दिया और वो करवट बदलकर सोई ही रह गई, जैसे कि वो नींद से जगी ही न हो | महेश जी उसके बाद वापस जाकर अखबार पढ़ने लगे |
इस घटना के बाद भी महेश जी लगभग 5 बजे तक वहाँ रहे | पर इस बीच कल्पना एक मिनट के लिए भी बेड से उठी नहीं, सोने का दिखावा करती रही | ये अलग बात है कि 1 सेकंड के लिए भी उसकी आँख लग नहीं पाई | वो कुछ नहीं बोली इसके पीछे कई कारण थे | एक तो उसे उस समय समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे क्या न करे, दूसरा डर, बदनामी का डर, आशा से रिश्ता खराब होने का डर, कैरियर खत्म हो जाने का डर |
उस घटना के बाद कल्पना खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश करती रही पर अंदर से वो बिलकुल ही डरी हुई, घबराई हुई थी और 2-3 दिन तक तो खा भी नहीं पाई ठीक से न ही उसे नींद आई | उसे सामान्य होने में लगभग पूरा सप्ताह लग गया पर मन में एक डर हमेशा हमेशा के लिए घर कर गया |
ये घटना इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है, बंद कमरे या कई जगह न जाने इस तरह की की कितनी ही घटनाएँ घटती हैं आए दिन | पर सवाल ये उठता है कि आखिर महेश जी जैसे लोग हैं कौन ? कितनों कि संख्या में हैं हम-आपके बीच ? ये समस्या आखिर है क्या और इसका निवारण क्या है ? मुझे अपने आप में इन प्रश्नों का कोई ठोस जवाब नहीं मिला इसलिए आप सबके समक्ष इसे रखा और आप सबकी राय कि अपेक्षा है |
15 टिप्पणियां:
It is a sort of compulsive sexual behaviour where you fail to control your impulse ,hence impulsive sexual behaviour it is .Pl read the link :
Compulsive sexual behavior - MayoClinic.com
www.mayoclinic.com/health/...sexual-behavior/DS00144ShareCompulsive sexual behavior — Comprehensive overview covers symptoms, causes, treatments of this impulse control disorder.
Symptoms - Treatments and drugs - Risk factors - Tests and diagnosis
एक ही कमरे की रसोई एक दम इतने नज़दीक ही होती है कि इतने अनुभवी व्यक्ति का इतना रिस्क लेना असंभव लगता है ...कल्पित कथा ही लगती है...
उस व्यक्ति की मानसिकता ...????
डॉ. श्याम गुप्त जी की बात से असहमत हूँ क्योंकि ये अनुभवी व्यक्ति (आशा के पिता )ये बात अच्छी तरह जानते होते हैं कि लड़की संकोचवश बोल नहीं पाएगी और ऐसा बंद कमरों में ही नहीं होता सिटी बसों ,भरे बाजार.. महिलायें न जाने कितनी बार रूबरू होती हैं इस घटिया मानसिकता से .....हाँ अब माँ की भूमिका निभा रही महिलाओं से कहना चाहूंगी कि वे बेटियों को सिखाएं कि ऐसी किसी भी हरकत पर जोर से बोलें यहाँ कल्पना भी अगर जोर से बोलती कि अंकल क्या कर रहें हैं आप ? तो असर अलग होता हाँ वो व्यक्ति जरूर यही कहता कि मैंने क्या किया पर उस घर में रह रही उन दोनों बच्चियों को भी मन ही मन एहसास हो चुका होता कि कुछ गलत है जरूर ....अगले की गलती पर खुद शरमाना छोड़कर देखिये अगले को मजबूर होना पड़ेगा कि वह अपनी घटिया मानसिकता छोड़े
..कल्पना ने महेश जी का हाथ झटक दिया था और उसके बाद महेश जी भी अपनी गलती समझ कर या जैसे भी हो...पीछे हट गए!..कल्पना ने अपना बचाव कर लिया!..कल्पना को सामान्य होने में एक सप्ताह का समय लगना स्वाभाविक ही था!...लेकिन कल्पना को चाहिए कि मनमें बिना किसी किस्म का डर पाले...अपनी सहेली आशा को इस घटना की जानकारी अवश्य दें!
...महेश जी जैसे लोगों से दुनिया भरी पडी है..उनसे खुद को कैसे बचा कर रखना...इसका निर्णय हर लड़की अपनी स्वयं की सोच से ले सकती है!...बिना डरे और शर्म किए योग्य व्यक्तियों से सलाह मशवरा ले कर भी निर्णय ले सकती है!...क़ानून की मदद लेने की आवश्यकता पड़ने पर वैसा भी कर सकती है!
i think kalpna has done wrong .she must told this to asha .
BEST BLOG.
IN MY OPINION SHALINI JI HAS SAID RIGHT .
अपराध सहना मेरी समझ में अपराध करने से भी अधिक अपराधिक मानसिकता है, कल्पना ने ऐसा न करके महेश को बढ़ावा ही दिया।
सभी की बातों से सहमत हूँ उसे आशा को ज़रूर बताना चाहिए था। क्यूंकि इस प्रकार के अधिकतर मामलों में ऐसी घटनाओं का विरोध नहीं होता जिस के कारण ऐसे लोगों को ऐसा अपराध करने की और भी ज्यादा शय मिल जाती है।
meri tippani kyon hata dee gayi?
मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में समाज की चिंता छोड़ ख़ामोशी को तोडना चाहिए ...क्या उस इंसान ने समाज की चिंता की ...जो उसके बाप की उम्र का था ...
VANDNA JI YOUR COMMENT HAS NOT DELETED .THIS WAS IN SPAM .NOW I HAVE PUBLISHED THIS .THANKS A LOT FOR SUCH A COMMENT .
Ladkiyo ko apni sarm haya chhodkar apradhon ka muh tod jabab dena chahiye taki koi bhi aisi himakat na kare aur us wyakti ke charitra ke bare me anya ladkiyon ko bhi batana chahiye taki wo unse jara sambhal kar rahe. Thanks
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