सोमवार, 7 जनवरी 2013

क्या बलात्कार के मामले में पीड़ित का नाम जाहिर करना सही होगा?

 

क्या बलात्कार के मामले में पीड़ित का नाम जाहिर करना सही होगा?

 आमतौर पर यही देखा जाता है कि जब भी समाज में बलात्कार जैसे जघन्य और निंदनीय अपराधों को अंजाम दिया जाता है तो मीडिया में इस खबर के आने के बाद भी पीड़िता का नाम जाहिर नहीं किया जाता है। इस मामले में कानून के तहत बलात्कार पीड़िता का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता क्योंकि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 228 ए के तहत अपराध माना जाता है। किन्तु देश की राजधानी दिल्ली में हुए एक बेहद क्रूर और हिंसक गैंग रेप के बाद केन्द्रीय राज्य मंत्री शशि थरूर के इस कथन ने कि बलात्कार पीड़िता का नाम छिपाकर क्या हासिल किया जा सकता है, एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि क्या वर्तमान संदर्भ में बलात्कार या यौन हिंसा की शिकार महिला का नाम ना जाहिर कर हम कुछ गलत कर रहे हैं?

9 टिप्‍पणियां:

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

मेरे हिसाब से तो नाम जाहिर ना करना ही सही है !!

Shalini kaushik ने कहा…

वह पीड़ित है कोई अपराधी नहीं नाम जाहिर करने में कोई त्रुटि नहीं ,नाम जाहिर होना ही चाहिए @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं

शारदा अरोरा ने कहा…

ऐसे मामलों में हमारा समाज ही पीड़ित का दिन रात पोस्ट मार्टम करता रहता है और जीना मुश्किल कर देता है ...यहाँ बात अलग है अब पीड़िता जीवित ही नहीं बची ...और माँ बाप भाई बहन उसकी वेदना और यादों के सदमे से आसानी से बाहर नहीं आ सकते ...अब अगर नाम के साथ एक मशाल जलती है ...ये इन्साफ की लड़ाई आगे बढती है ...उनके जीवन को भी एक दिशा ...एक उद्देश्य मिल जाएगा ...उनका दुख मिट तो नहीं सकता पर थोड़ा सा हल्का हो सकता है ...मेरे ख्याल से तो कोई हर्ज़ नहीं हैं ...अगर वो भी तैयार हैं।

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

प्रभावी,
शुभकामना,

जारी रहें !!


आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज)

Rajendra kumar ने कहा…

पीडिता के नाम जाहिर न करना कोई समझदारी नही है।बलात्कार जैसे अमानवीय अपमान से रूबरू होने के बाद किसी भी पीडिता के लिए दुसरे अपमान कोई मायने नही रखती।इसी दुसरे अपमान होने की आकंशा से कितनी ही जिन्दगी के अँधेरे में घुट-घुट कर जी रही है।हमारे समाज को भी यानि हम सबको किसी भी पीडिता के साथ सहानुभूति के साथ सहयोग देना चाहिए न की दुत्कार। धन्यबाद।
वेब मीडिया
भूली-बिसरी यादें

virendra sharma ने कहा…


बेशक माँ बाप तैयार हैं नाम उजगार होने पे उन्हें कोई एतराज न होगा .लेकिन क्या यह कानूनी प्रावधान के ही विपरीत नहीं होगा .बीच का रास्ता यही है प्रतीकात्मक नाम निर्भया ही उपयुक्त लगता

है .तख्खुल-लुस ही सही निर्भया .

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

पीडिता का नाम यदि उसे सम्मानित करने और न्याय दिलाने केलिए बताना जरुरी है तो बतादेना चाहिए .केवल लोगो की जानने की उत्सुकता को शांत करने के लिए नहीं.इससे परिवार वालों का जीना दूभर हो जाता है.
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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

सोच अभी जारी है निष्कर्ष पर पहूंचने तक

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत सही टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं