आजकल दिल्ली रेप काण्ड के परिप्रेक्ष्य में सारा भार त आक्रोशित व उत्क्रांत है ..होना भी चाहिए .....एक तरफ जहाँ समाज के विविध क्षेत्रों से विभिन्न विज्ञ जनों के विविध मत , उदाहरण , उपदेश, विवेचन , व्याख्याएं आदि आरहे हैं वहीं ....युवाओं...आक्रोशित नर-नारियों ..महिला संगठनों , पश्चिम वादियों , प्रगतिवादियों के भी आक्रोशित बयान आरहे हैं....... इसी परिप्रेक्ष्य में विषय पर प्रकाश डालते हुए कुछ युक्ति-युक्त विचार प्रस्तुत हैं .... स्त्री विमर्श की एक रचना ( शूर्पणखा --काव्य-उपन्यास-- रचयिता ..डा श्याम गुप्त ) से कुछ अंश ......
सीता अनुसूया संवाद.....
१५-
नारि-पुरुष में अंतर१ तो है,
सभी समझते, सदा रहेगा |
दो-नर या दो नारी जग में,
एक सामान भला कब होते ?
भेद बना है, बना रहेगा,
भेदभाव व्यवहार नहीं हो ||
१६-
सारे गुण से युक्त राम हैं ,
जो आदर्श पति में होते |
मान और सम्मान नारि का ,
पुरुष-वर्ग का धर्म है सदा|
जो पत्नी का मान रखे नहिं,
वो जग में क्यों पति कहलाये ||
१९-
पुरुष-धर्म से जो गिर जाता,
अवगुण युक्त वही पति करता;
पतिव्रत धर्म-हीन , नारी को |
अर्थ राज्य छल और दंभ हित,
नारी का प्रयोग जो करता;
वह नर कब निज धर्म निभाता ?
२०-
वह समाज जो नर-नारी को,
उचित धर्म-आदेश न देता |
राष्ट्र राज्य जो स्वार्थ नीति-हित,
प्रजा भाव हित कर्म न करता;
दुखी, अभाव-भाव नर-नारी,
भ्रष्ट, पतित होते तन मन से ||
२१-
माया-पुरुष रूप होते हैं,
नारी-नर के भाव जगत में |
इच्छा कर्म व प्रेम-शक्ति से ,
पुरुष स्वयं माया को रचता |
पुनः स्वयं ही जीव रूप धर,
माया जग में विचरण करता४ ||
२२-
माया, प्रकृति उसी जीव के,
पालन, पोषण, भोग व धारण;
के निमित्त ही गयी रचाई |
किन्तु ,जीव-अपभाव रूप में,
निजी स्वार्थ या दंभ भाव से;
करे नहीं अपमान प्रकृति का ||
२३-
तभी प्रकृति माया या नारी,
करती है सम्मान पुरुष का |
पालन पोषण औ धारण हित,
भोग्या भी वह बन जाती है|
सब कुछ देती बनी धरित्री,
शक्ति नारि माँ साथी पत्नी ||
शूर्पनखा नासाहरण के उपरांत
लक्ष्मण-राम संवाद....
लक्ष्मण ने पूछा रघुवर से-
कैसे हुआ आचरण एसा,
ज्ञानी रावण की भगिनी का |
नारी तो अवध्य होती है,
और सदा सम्माननीय भी;
तो क्या प्रभु यह दंड उचित था४ ||
कैसे हुआ आचरण एसा,
ज्ञानी रावण की भगिनी का |
नारी तो अवध्य होती है,
और सदा सम्माननीय भी;
तो क्या प्रभु यह दंड उचित था४ ||
७-
लक्ष्मण !अति भौतिकता के वश,
भाव विचार कर्म व संस्कृति ;
बन जाते सुख प्राप्ति भाव ही
नारी का स्वच्छंद आचरण ,
परनारी या परपुरुष गमन;
लगता है स्वाभाविक सा ही ||
लक्ष्मण !अति भौतिकता के वश,
भाव विचार कर्म व संस्कृति ;
बन जाते सुख प्राप्ति भाव ही
नारी का स्वच्छंद आचरण ,
परनारी या परपुरुष गमन;
लगता है स्वाभाविक सा ही ||
८-
मन की सुन्दरता से अन्यथा,
शरीर ही प्रधान होजाता |
शूर्पणखा का यह आचरण ,
राक्षस कुल अनुरूप ही तो था |
यह ही तो राक्षस संस्कृति है ,
पली बढ़ी जिसमें वह नारी ||
मन की सुन्दरता से अन्यथा,
शरीर ही प्रधान होजाता |
शूर्पणखा का यह आचरण ,
राक्षस कुल अनुरूप ही तो था |
यह ही तो राक्षस संस्कृति है ,
पली बढ़ी जिसमें वह नारी ||
९-
किन्तु देव मानव संस्कृति तो ,
है परमार्थ भाव पर विकसित;
सात्विक भाव विचार अपनाती |
पुरुष स्वयं रहते मर्यादित ,
पर दुःख कातर, परोपकारी -
कर्म भाव ही सब अपनाते ||
किन्तु देव मानव संस्कृति तो ,
है परमार्थ भाव पर विकसित;
सात्विक भाव विचार अपनाती |
पुरुष स्वयं रहते मर्यादित ,
पर दुःख कातर, परोपकारी -
कर्म भाव ही सब अपनाते ||
१०-
नारी, मन की सुन्दरता को,
शाश्वत मान, कुलवती होतीं |
त्याग प्रेमभावना की मूरत,
पति की अनुगमिनि होती हैं |
प्रश्रय नहीं दिया जाता है,
वाह्य रूप-सौन्दर्य चलन को ||
नारी, मन की सुन्दरता को,
शाश्वत मान, कुलवती होतीं |
त्याग प्रेमभावना की मूरत,
पति की अनुगमिनि होती हैं |
प्रश्रय नहीं दिया जाता है,
वाह्य रूप-सौन्दर्य चलन को ||
११-
अति भौतिक उन्नति की लक्ष्मण,
परिणति है, अति सुख-अभिलाषा |
जन्मदात्री है, समाज में,
द्वंद्व भाव,प्रतियोगी संस्कृति५ ;
और सभी जन श्रेष्ठ भाव तज-
सर्वश्रेष्ठ 'मैं' ६ - में रम जाते ||
१२-
'येन केन प्रकारेण' स्वयं को,
सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की७ ;
परिपाटी स्थित होजाती |
फिर समाज में द्वंद्व भावना,
असमानता,अकर्म व अधर्म;
की स्थिति बनने लगती है ||
१३-
सभी कार्य व्यवहार जगत के,
धन आधारित ८ होजाते हैं |
अति औद्योगिक प्रगति सदा ही,
अर्थतंत्र ९ को विकास देती |
अत्याचार अनीति अकर्म व,
अपराधों को प्रश्रय मिलता ||
१४-
उचित सुपाच्य और बल-वर्धक,
सौम्य खाद्य के अभाव कारण;
तन बलहीन क्लांत होजाता |
विविध व्याधियों से घिर करके,
चिंतन के अभाव में मन भी;
विकार-मय, अस्थिर होजाता ||
१५-
उसी प्रकार उत्तम चरित्र व ,
उचित लक्ष्य के चिंतन से युत ;
उत्तम साहित्य व विचार की ,
पठन-पाठन योग्य सामग्री;
के समाज में अभाव कारण -
अधम विचार प्रश्रय पा जाते ||
१६-
स्त्री-पुरुष सभी वर्गों के,
अति सुखानुपेक्षी१० हो जाते |
स्वच्छंद आचरण चलन से,
मर्यादा विहीन बनते हैं |
सुख के लिए करेंगे कुछ भी,
यह धारणा प्रमुख होजाती || -----क्रमश: भाग दो......
कुंजिका -- १= पंचवटी पर रहकर पूरी तैयारी के बाद रावण को युद्ध सन्देश देना ही शायद राम-वनागमन का मूल उद्देश्य था और उसका मिला हुआ मौक़ा राम ने गंवाया नहीं | ... २= प्रथम वार किसी ने शासक व किसी शक्तिशाली राक्षस को असहाय अवस्था में पहुंचाने का प्रयास किया था |....३= राक्षसों द्वारा क्रोध में और अधिक अत्याचार का भय, घटना पर आश्चर्य व इच्छानुसार कृत्य होने की प्रसन्नता ,,,४= सेना के अनुशासन की भांति लक्ष्मण ने पहले आज्ञा का पालन किया तत्पश्चात शंका निवारण की इच्छा जताई ...५ , ६, व ७ = अनावश्यक प्रतियोगी भाव ही स्वयम को श्रेष्ठ सिद्ध करने के अहम् के पालन में भ्रष्टाचार व अनैतिक आचरण का मूल होता है |...८ व ९ = वास्तव में मनोरंजन , स्वास्थ्य व एनी जन सामाजिक कार्यों को धन आधारित नहीं होना चाहिए , अर्थतंत्र --अर्थ -व्यवस्था के नियमन के लिए हो न की प्रत्येक कार्य अर्थ-आधारित हो....१०= अत्यंत सुख की इच्छा ही सारे भ्रष्टाचार व अनैतिकता का कारण होती है .
अति भौतिक उन्नति की लक्ष्मण,
परिणति है, अति सुख-अभिलाषा |
जन्मदात्री है, समाज में,
द्वंद्व भाव,प्रतियोगी संस्कृति५ ;
और सभी जन श्रेष्ठ भाव तज-
सर्वश्रेष्ठ 'मैं' ६ - में रम जाते ||
१२-
'येन केन प्रकारेण' स्वयं को,
सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की७ ;
परिपाटी स्थित होजाती |
फिर समाज में द्वंद्व भावना,
असमानता,अकर्म व अधर्म;
की स्थिति बनने लगती है ||
१३-
सभी कार्य व्यवहार जगत के,
धन आधारित ८ होजाते हैं |
अति औद्योगिक प्रगति सदा ही,
अर्थतंत्र ९ को विकास देती |
अत्याचार अनीति अकर्म व,
अपराधों को प्रश्रय मिलता ||
१४-
उचित सुपाच्य और बल-वर्धक,
सौम्य खाद्य के अभाव कारण;
तन बलहीन क्लांत होजाता |
विविध व्याधियों से घिर करके,
चिंतन के अभाव में मन भी;
विकार-मय, अस्थिर होजाता ||
१५-
उसी प्रकार उत्तम चरित्र व ,
उचित लक्ष्य के चिंतन से युत ;
उत्तम साहित्य व विचार की ,
पठन-पाठन योग्य सामग्री;
के समाज में अभाव कारण -
अधम विचार प्रश्रय पा जाते ||
१६-
स्त्री-पुरुष सभी वर्गों के,
अति सुखानुपेक्षी१० हो जाते |
स्वच्छंद आचरण चलन से,
मर्यादा विहीन बनते हैं |
सुख के लिए करेंगे कुछ भी,
यह धारणा प्रमुख होजाती || -----क्रमश: भाग दो......
कुंजिका -- १= पंचवटी पर रहकर पूरी तैयारी के बाद रावण को युद्ध सन्देश देना ही शायद राम-वनागमन का मूल उद्देश्य था और उसका मिला हुआ मौक़ा राम ने गंवाया नहीं | ... २= प्रथम वार किसी ने शासक व किसी शक्तिशाली राक्षस को असहाय अवस्था में पहुंचाने का प्रयास किया था |....३= राक्षसों द्वारा क्रोध में और अधिक अत्याचार का भय, घटना पर आश्चर्य व इच्छानुसार कृत्य होने की प्रसन्नता ,,,४= सेना के अनुशासन की भांति लक्ष्मण ने पहले आज्ञा का पालन किया तत्पश्चात शंका निवारण की इच्छा जताई ...५ , ६, व ७ = अनावश्यक प्रतियोगी भाव ही स्वयम को श्रेष्ठ सिद्ध करने के अहम् के पालन में भ्रष्टाचार व अनैतिक आचरण का मूल होता है |...८ व ९ = वास्तव में मनोरंजन , स्वास्थ्य व एनी जन सामाजिक कार्यों को धन आधारित नहीं होना चाहिए , अर्थतंत्र --अर्थ -व्यवस्था के नियमन के लिए हो न की प्रत्येक कार्य अर्थ-आधारित हो....१०= अत्यंत सुख की इच्छा ही सारे भ्रष्टाचार व अनैतिकता का कारण होती है .
नारी, केंद्र-बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अवध्य है ,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे ||
२९-
नारी के निषेध-नियमन ही,
पावनता के संचारण की;
उचित निरंतरता समाज में,
सदा बनाए रखते, लक्ष्मण !
अवमानना, रेख-उल्लंघन,
कारण बनते, दुराचरण का ||
३०-
राजा जनता या प्रबुद्ध जन,
जब अपने दायित्व भूलकर;
उचित दंड यदि नहीं देते |
अनाचार को प्रश्रय देकर,
पाप-कर्म में भागी बनते;
नियम से नहीं ऊपर कोई ||
३१-
नारी ही तो हे प्रिय भ्राता !
जननी होती नर-नारी की ।
प्रथम गुरु है वह सन्तति की,
सन्स्कार के पुष्प खिलाती ।
विष की हो या सुगंध-गुण युत,
यह वल्लरी फैलती जाती ||
३२-
शिक्षित और सुसंस्कृत नारी,
मर्यादा युत आचरण तथा;
शुचि कर्त्तव्य भाव अपनाती |
संस्कारमय नीति-निपुणता,
वर्त्तमान एवं नव पीढी -
में , मर्यादा भाव जगाती ||
३३-
विविध कारणों से यदि नारी,
मर्यादा उल्लंघन करती |
दुष्ट भाव, स्वच्छंद आचरण,
से समाज दूषित होजाता |
कई पीढ़ियों तक फिर लक्ष्मण,
यह दुष्चक्र चलता रहता है ||
३४-
जब उद्दंड, रूप-ज्वाला युत,
और दुर्दम्य काम-पिपासा-
युक्त ताड़का१ से कौशिक का ;
तेज, तपस्या-बल गलता था ,
अत्याचार, अनीति मिटाने;
उसका भी बध किया गया था ||
३५-
शूर्पणखा का दंड हे अनुज !
सिर्फ व्यक्ति को दंड नहीं है |
चारित्रिक धर्मोपदेश है,
नारी व सम्पूर्ण राष्ट्र को |
चेतावनि है दुष्ट जनों को ,
कुकर्म-रत नारी-पुरुषों को ||
३६-
विना परिश्रम किये लाभ हित,
नारी ले पर-पुरुष सहारा |
है प्रतिकूल ही धर्म भाव के,
उनके साथ सदा छल होता |
उत्तम पतिव्रत धर्म निभाकर,
नारि, परम गति पाय सहज ही ||
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