शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

''ना ताई ...इब और ना ...''-लघु कथा

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''ना ताई ...इब और ना ...''-लघु कथा
ताई ने घर में घुसते ही  रो रोकर  हंगामा  खड़ा  कर दिया -''हाय ...हाय ...मेरा बबलू ...दूसरी बार भी लौंडिया ही  जनी  इसकी  बहू  ने ...क्या  भाग  ले  के  आई  यो  बहू  ...हे  भगवन !! ...''.  बबलू अन्दर कमरे से हँसता  हुआ निकलकर आया और आते ही ताई के चरण-स्पर्श किये और आँगन में पड़ी खाट  की ओर इशारा करते बोला -''ताई गम न मान मेरी दोनों बच्चियां ही कुल का नाम रोशन करेंगी .ये बता तुझे कोई तकलीफ तो न हुई सफ़र में ?'' ताई कड़कते हुए बोली -''अरे हट मरे ...मेरी तकलीफ की पूछे है !....तकलीफ तो तेरा  फून  आते ही हो गयी थी .बेटे इब ज्यादा दिन की ना हूँ मैं ...तेरे लाल का मुख देख लूँ बस इसी दिन की आस में जी रही हूँ .....चल इब की बेर ना हुआ अगली बेर जरूर होवेगा  ...हिम्मत न हार .मैंने माई से मन्नत मांगी है .''  बबलू ताई के करीब खाट पर बैठते हुआ बोला  -''ना ताई ...इब और ना ...दूसरा बच्चा भी बड़े ऑपरेशन से जना है तेरी बहू ने .....और तू ही तो बतावे थी कि मेरी माँ भी इसी चक्कर में मेरी बेर चल बसी थी .वो तो तू थी  जिसने मेरी चारो बहनों व् मेरा पालन-पोषण ठीक से कर दिया ....ना ताई ना मैं अपनी बच्चियों को बिन माँ की  न होने दूंगा !'' ये कहकर बबलू अन्दर से आती अपनी तीन वर्षीय बिटिया आस्था को गोद उठाने के लिए बढ़ लिया  और ताई बड़बडाती  रह गयी .
                     शिखा कौशिक 'नूतन '

7 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

nice

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

virendra sharma ने कहा…

लघु कथा नहीं है यह हमारी परम्परा गत सोच का आईना है .नारी के साथ जन्म से ही होने वाली दुभांत और दुराग्रह का दास्तावेज़ है मरे ऐसी ताई .जल्दी से जल्दी जिसकी सांस पोते में अटकी है

जाए सुश्री (इसे सुसरी पढ़ें )अब रौरव नरक में (लड़की का मुंह देख लिया ताई इब कुछ न हो सके ,नरक में ही जायेगी इब तू ).

Shikha Kaushik ने कहा…

टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

प्रेरणादायक प्रस्तुति !!

Shikha Kaushik ने कहा…

टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सही कदम....