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गुमशुदा हूँ मैं,
आज भी,
इस दौर में,
दिखती हूँ,
हर जगह,
कंधे से कन्धा मिलाती,
पर मान्यताओं/रुढियों/परम्पराओं में,
मैं ही बिधी हूँ,
कुछ इस तरह,
कि गुमशुदा है मेरी पहचान,
सदियों से।
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ...
शुभकामनायें ।।
shaskt rachna....
हूँ.... सच कहा ....
पहचान बनाना ही होगा ,
प्रकाश में आना ही होगा |
परम्पराओं को निभाना होगा
रूढ़ियों को मिटाना होगा ||
---तमसो मा ज्योतिर्गमय ...
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
sundar.
सुंदर अभिव्यक्ति |
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