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समाज में नारी की भूमिका - हमारी सोच ...
भारत समाज एक पुरुष प्रधान समाज है और पुरुष महिलाओं को अधिकतर अपने से छोटा समझते हैं। हमें महिलाओं के साथ दोहरे मापदंड नही अपनाने चाहियें।
जब घर में लडकी पैदा होती है तो इतनी ख़ुशी नही होती जितनी पुत्र पैदा होने पर होती है। जबकि अधिकतर, माता-पिता का साथ जरुरत के समय लड़की ही देती है। शिक्षा के मामले में भी लड़कियों को कम पढाया जाता है। विवाह भी लड़कियों का जल्दी कर दिया जाता है। लड़की के विवाह के समय दहेज़ दिया जाता है या देना पड़ता है जबकि लडके के मामले में दहेज़ माँगा या लिया जाता है। अपने घर की बहु, बहन या बेटी घर से बाहर जाये तो अंग ढके होने चाहियें और ढंग भी सही होना चाहिए जबकि दूसरों की बहु, बहन या बेटी बाहर दिखाई दे तो ये माप-दंड बदल जाते हैं। मारने और जलाने के किस्से केवल लड़कियों के बारे में ही आते हैं।
भारत की संस्कृति में महिलाओं की सदा ही मुख्य भूमिका रही है। धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा रही है। सभी देवी-देवताओं ने भी सदा ही नारी को पुरुष से ज्यादा सम्मान दिया चाहे वो सीता हो, राधा हो या पार्वती हो। रानी लक्ष्मी बाई, पुतली बाई अदि की भूमिका को भी हम भूल नही सकते। आज भी महिलाएं किसी कार्य क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नही हैं। महिलाएं भारतीय फौज में, वायुयान चालक के रूप में और अब तो ग्रहों, उपग्रहों की यात्रा में भी अपना डंका बजा चुकी हैं।
अगर समाज में नारी न हो तो पुरुष कहाँ से आयेंगे। नारी जन्मदायिनी है, इस सृष्टी की सूत्रधार है। जिस राज्य में ज्यादा कन्या भ्रूण हत्या हुई, वहीँ पर विवाह के लिए लड़कियां कम पड़ने लगी।
अध्यात्मिक जगत में भी महिलाएं पुरुषों से पीछे नही हैं। एक अध्यात्मिक संस्था में तो प्रचार कार्य अधिकतर नारी वर्ग ने ही संभाला हुआ है। वहां वे साधू- संत के रूप में कार्यरत हैं।
हम अपने पेज के माध्यम से सभी से ये आग्रह करते हैं कि नारी वर्ग को सभी जगह, अपने घर में जन्म के समय से ही, शिक्षा क्षेत्र में, कार्य क्षेत्र में, विवाह के सम्बन्ध में, समाज में या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बराबर का सम्मान दें !
भारत समाज एक पुरुष प्रधान समाज है और पुरुष महिलाओं को अधिकतर अपने से छोटा समझते हैं। हमें महिलाओं के साथ दोहरे मापदंड नही अपनाने चाहियें।
जब घर में लडकी पैदा होती है तो इतनी ख़ुशी नही होती जितनी पुत्र पैदा होने पर होती है। जबकि अधिकतर, माता-पिता का साथ जरुरत के समय लड़की ही देती है। शिक्षा के मामले में भी लड़कियों को कम पढाया जाता है। विवाह भी लड़कियों का जल्दी कर दिया जाता है। लड़की के विवाह के समय दहेज़ दिया जाता है या देना पड़ता है जबकि लडके के मामले में दहेज़ माँगा या लिया जाता है। अपने घर की बहु, बहन या बेटी घर से बाहर जाये तो अंग ढके होने चाहियें और ढंग भी सही होना चाहिए जबकि दूसरों की बहु, बहन या बेटी बाहर दिखाई दे तो ये माप-दंड बदल जाते हैं। मारने और जलाने के किस्से केवल लड़कियों के बारे में ही आते हैं।
भारत की संस्कृति में महिलाओं की सदा ही मुख्य भूमिका रही है। धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा रही है। सभी देवी-देवताओं ने भी सदा ही नारी को पुरुष से ज्यादा सम्मान दिया चाहे वो सीता हो, राधा हो या पार्वती हो। रानी लक्ष्मी बाई, पुतली बाई अदि की भूमिका को भी हम भूल नही सकते। आज भी महिलाएं किसी कार्य क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नही हैं। महिलाएं भारतीय फौज में, वायुयान चालक के रूप में और अब तो ग्रहों, उपग्रहों की यात्रा में भी अपना डंका बजा चुकी हैं।
अगर समाज में नारी न हो तो पुरुष कहाँ से आयेंगे। नारी जन्मदायिनी है, इस सृष्टी की सूत्रधार है। जिस राज्य में ज्यादा कन्या भ्रूण हत्या हुई, वहीँ पर विवाह के लिए लड़कियां कम पड़ने लगी।
अध्यात्मिक जगत में भी महिलाएं पुरुषों से पीछे नही हैं। एक अध्यात्मिक संस्था में तो प्रचार कार्य अधिकतर नारी वर्ग ने ही संभाला हुआ है। वहां वे साधू- संत के रूप में कार्यरत हैं।
हम अपने पेज के माध्यम से सभी से ये आग्रह करते हैं कि नारी वर्ग को सभी जगह, अपने घर में जन्म के समय से ही, शिक्षा क्षेत्र में, कार्य क्षेत्र में, विवाह के सम्बन्ध में, समाज में या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बराबर का सम्मान दें !
2 टिप्पणियां:
Behtar post
सदाचारी व्यक्ति ही एसा कर सकता है...
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