छत पर , वरांडे में ,
या जीने की ऊपर वाली सीढ़ी पर ; ...
खेलते हुए,
या लड़ते हुए ;
तुमने सदैव ही लिया था,
मेरा पक्ष |
मेरे न खेलने पर ,
तुम्हारा भी वाक्-आउट ;
मेरे झगड़ने पर,
पीट देने पर भी ,
तुम्हारा मुस्कुराना ;
एक दूसरे से नाराज़ होने पर,
बार बार मनाना ;
जीवन कितना था सुहाना ,
हे सखि !
जीवन कितना था सुहाना ||
7 टिप्पणियां:
आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति पर
हमारी बधाई ||
terahsatrah.blogspot.com
bahut sundar hrdy ko chhoti prastuti .aabhar .
सुन्दर शब्द चित्र भाव चित्र बचपन की बाल सखा का .
सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ..बाल सखा का सुन्दर भाव पूर्ण चित्रण.....शुभकामनाएं !!!
धन्यवाद.....श्रीप्रकाश जी, वीरूभाई, शिखाजी व रविकर....
behtreen prstuti....
धन्यवाद ..सागर जी...आभार..
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