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बुधवार, 14 दिसंबर 2011

सुहाना जीवन ......कविता...डा श्याम गुप्त ....




छत पर , वरांडे में ,
या जीने की ऊपर वाली सीढ़ी पर ;           ...
खेलते हुए,
या लड़ते हुए ;
तुमने सदैव ही लिया था,
मेरा पक्ष |
मेरे न खेलने पर ,
तुम्हारा भी वाक्-आउट ;
मेरे झगड़ने पर,
पीट देने पर भी ,
तुम्हारा मुस्कुराना ;
एक दूसरे से नाराज़ होने पर,
बार बार मनाना ;
जीवन कितना था सुहाना ,
हे सखि !
जीवन कितना था सुहाना ||