बुधवार, 14 दिसंबर 2011

सुहाना जीवन ......कविता...डा श्याम गुप्त ....




छत पर , वरांडे में ,
या जीने की ऊपर वाली सीढ़ी पर ;           ...
खेलते हुए,
या लड़ते हुए ;
तुमने सदैव ही लिया था,
मेरा पक्ष |
मेरे न खेलने पर ,
तुम्हारा भी वाक्-आउट ;
मेरे झगड़ने पर,
पीट देने पर भी ,
तुम्हारा मुस्कुराना ;
एक दूसरे से नाराज़ होने पर,
बार बार मनाना ;
जीवन कितना था सुहाना ,
हे सखि !
जीवन कितना था सुहाना ||

7 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति पर
हमारी बधाई ||

terahsatrah.blogspot.com

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar hrdy ko chhoti prastuti .aabhar .

virendra sharma ने कहा…

सुन्दर शब्द चित्र भाव चित्र बचपन की बाल सखा का .

Unknown ने कहा…

सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ..बाल सखा का सुन्दर भाव पूर्ण चित्रण.....शुभकामनाएं !!!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद.....श्रीप्रकाश जी, वीरूभाई, शिखाजी व रविकर....

सागर ने कहा…

behtreen prstuti....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद ..सागर जी...आभार..