कितनी गरिमामयी हो गयी हो, तुम ,
कितनी महिमामयी होगई हो, तुम ;
मातृत्व की महान पदवी,
नारी जीवन की चिर आकांक्षा ,
विश्व की किसी भी-
"पद्मश्री" से बढ़ कर है |
यह उपनिषद् के महान मन्त्र को ,
जीवन के महान सत्य को,
सबसे उज्जवलतम रूप में,
प्रस्तुत करती है, जहां--
आत्म से आत्म मिलकर,
आत्ममय होजाता है ; और--
पुनः आत्म से --
नए आत्म का जन्म होता है ;
आत्म फिर भी आत्म रहता है |
यथा --पूर्ण से पूर्ण मिलकर ,
पूर्ण ही रहता है |
पूर्ण से पूर्ण घटने पर भी-
पूर्ण ही शेष रहता है |
ब्रह्म सदैव पूर्ण है |
आत्म सदैव पूर्ण है |
जीव से मिलने से पहले भी,
जीव से मिलने के बाद भी ;
जीव स्वयं पूर्ण है |
अतः --पूर्णाहुति के बाद भी ,
वही पूर्ण रहकर,
कितनी गरिमामयी होगई हो तुम |
कितनी महिमामयी होगई हो तुम |
कितनी सम्पूर्ण होगई हो तुम || (---काव्य दूत से )
4 टिप्पणियां:
नारी का पुत्री जनम, सहज सरलतम सोझ |
सज्जन रक्षे भ्रूण को, दुर्जन मारे खोज ||
नारी बहना बने जो, हो दूजी संतान
होवे दुल्हन जब मिटे, दाहिज का व्यवधान ||
नारी का है श्रेष्ठतम, ममतामय अहसास |
बच्चा पोसे गर्भ में, काया महक सुबास ||
दस शिक्षक के तुल्य है, इक आचार्य महान |
सौ आचार्यों से बड़ा, पिता तुम्हारा जान ||
और हजारों गुनी है, इक माता की शान |
उनकी शिक्षा सर्वदा, उत्तम और महान ||
sateek shabdon me nari-mahima ka chitran kiya hai aapne .aabhar
बहुत ही गहरा विचार..!
धन्यवाद रविकर--आप तो दोहाचार्य बनते जारहे हैं...बधाई..
---धन्यवाद..मनीष जी,शिखाजी
एक टिप्पणी भेजें