सारा दिन घर में आराम से रहती हो !
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सारा दिन घर में रहती हो
तुम क्या जानो दुनिया के धंधे ?
मैं बाहर जाता हूँ
कितना थक जाता हूँ !
तुम तो आराम से रहती हो ;
एक बात पूछूं
तुम सारे दिन घर में करती क्या हो ?
सबसे पहले जागकर
घर की कर लेती हो झाड़ू-बुहारी ;
नहा-धोकर पूजा करती हो
फिर नाश्ते की तैयारी ;
झूठे बर्तन मांज देती हो ;
हमारा टिफिन लगा देती हो ;
फिर.......फिर ...जब मैं ऑफिस
और बच्चे चले जाते हैं स्कूल
तब ...तुम ..क्या करती हो ?
सारा दिन घर में आराम
से ही तो रहती हो .
दोपहर में मैले कपडे धोकर
सुखा देती हो ;
बच्चे स्कूल से लौट आते हैं
खाना बनाकर खिला देती हो ,
होमवर्क में उनकी मदद कर देती हो ,
इसके बाद ........इसके बाद ..
क्या करती हो ?
दिन भर घर में आराम से ही तो
रहती हो !
घर में आराम से रहने के बावजूद
जब मैं थका-हरा शाम को
घर लौटता हूँ तुम कुछ
थकी-थकी सी लगती हो ;
मैं फ्रेश होकर आता हूँ
तुम भोजन लगा देती हो ,
सूखे कपडे समेट लाती हो ;
उनपर स्त्री कर देती हो ,
शाम की चाय बनाकर
रात के भोजन की तैयारी में लग जाती हो ,
परोसती हो ,खिलाती हो
रसोई घर का सारा काम निबटाती हो
फिर...फिर....फिर ...
लेटते ही सो जाती हो
समझ में नहीं आता इतना ज्यादा
कैसे थक जाती ही ?
जबकि दिनभर घर में आराम से रहती हो !
शिखा कौशिक
7 टिप्पणियां:
nari ki yahi vyatha hai..ghar ke kamon ko halke tareeke se liya jana hamari sanskruti me shamil ho gaya hai...sundar shabdon me aapne is vyatha ko ubhara hai..
यही तो कोई समझ कर भी नही समझना चाहता।
naari ki ahmiyat ham sabko samajhna hoga...
That’s pretty exciting news and I really hope more people get to read this.
From everything is canvas
अवगति गति कछु कहत न आवै,
ज्यों गूंगेहि मीठे गुड कौ रस अन्तरगत ही भावै ।
कहानी घर घर की....
एक दिन भी यदि घर में कोई महिला न हो तो सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है.....
सुंदर रचना।
बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति,बधाई.
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