''अच्छा फिर फोन मत करना ...!'-एक लघु कथा
[फोटो सर्च से साभार ]
''हैलो.....हैलो .....बेटा कब आ रहे हो इण्डिया ?...बहुत मन कर था तुमसे,बहू व् पोते से मिलने का .''...''माँ अभी तो टाइम नहीं मिल पायेगा ...यूं नो आई एम् वैरी बिजी .......आप करती क्या हो सारे दिन वहां ?डैड की डैथ के बाद से आप हो भी बिलकुल अकेली गयी हो ........आप किसी ओल्ड एज होम में शिफ्ट कर जाइये ....मन भी लग जायेगा आपका .हमारे आने का कोई प्रोग्राम नहीं है ..शायद ही समय मिले .आपके पोते की जिद पर नेक्स्ट वीक यूरोप भ्रमण की योजना है .अपना ध्यान रखना .....कोई परेशानी हो तो फोन कर देना .माँ प्रणाम !''
दो महीने बाद -
''हैलो ...हैलो ....माँ...प्रणाम! क्या बात है दो महीने से कोई फोन नहीं आया .मैंने अगले वीक इण्डिया आने का प्रोग्राम बनाया है .आपकी बहू और पोता भी आ रहे हैं .''...... माँ गंभीर स्वर में बोली ''अरे बेटा खुद ही बोलते जाओगे या मेरी भी सुनोगे...यहाँ आने का प्रोग्राम बनाने से पहले मुझसे पूछ तो लेते .अभी मेरे पास टाइम नहीं है ......बहुत बिजी हूँ .ओल्ड एज होम में शिफ्ट कर गयी हूँ .रोज नए काम ....नए परिचय .....अब तो ये ही मेरा परिवार है .मेरी मृत्यु पर भी आने की जरूरत नहीं .यहाँ मैंने सब इंतजाम कर लिया है .अच्छा फिर फोन मत करना ...!'
शिखा कौशिक
6 टिप्पणियां:
बहुत कठिन है डगर पनघट की....
अभी मेरे पास टाइम नहीं है ......बहुत बिजी हूँ सुन्दर ब्यंग्य
आज के समाज की असलियत को खोजता
मर्मस्पर्शी कहानी।
गहरा व्यंग्य।
बेहतरीन।
marma sparshi kahi to hai magar eent ka javav pathar se diya gaya wo bahut accha lagaa ...
जब तक ऐसी सोच नही बनेगी और बेटो को ऐसे जवाब नही मिलेंगे तब तक बदलाव नही आयेगा…………………बेहतरीन लघुकथा बहुत पसन्द आयी।
सार्थक प्रस्तुति.
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