गुरुवार, 3 नवंबर 2011

....महिलाओं का नाम , सामाजिक बुराई व...हिन्दी..... डा श्याम गुप्त ..

                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           

बिंदु-१ .....           महिलायें  सामाजिक बुराई के खिलाफ आगे आयें ....निश्चय ही अच्छा नारा है .....परन्तु यदि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च स्तर की महिलायें  अपना नाम ... प्रतिभा  देवीसिंह पाटिल....एवं अभी हाल में ही चिकित्सा वि विद्यालय की कुलपति पद पर सुशोभित ...डा सरोज चूडामणि  गोपाल ..... अर्थात ....पति (..देवीसिंह ...व गोपाल) के नाम ....के बिना अपनी स्वतंत्र  पहचान ( आइडेंटिटी ) नहीं स्थापित कर सकती हैं तो ......हम क्या अपेक्षा रखें स्वयं महिलाओं से .?? ........क्या यह नाम -स्वरुप ...प्रेम व समर्पण के वशीभूत रखा जाता है  या पारिवारिक, परम्परा व पति के दबाव स्वरुप .....?
बिंदु-२.....               क्या माननीय राष्ट्रपति महोदया ...या हिन्दी प्रदेश के ह्रदय प्रदेश की माननीय मुख्य मंत्री  या वे सभी महान महिलायें, महिला संगठन , महिला कालेज के पदाधिकारी व छात्र-संगठन , महान पूर्व छात्राएं व महान छात्राएं .......उदघाटन पट्ट को देश की भाषा  राष्ट्र-भाषा हिन्दी में नहीं करा सकती थीं जो गुलामी की प्रतीक भाषा अंग्रेज़ी में लिखा गया |

6 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak prashn uthhayen hain .aabhar

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सारगर्भित प्रस्तुति, आभार.

Pallavi saxena ने कहा…

सार्थक प्राशन उठती बढ़िया पोस्ट समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

Atul Shrivastava ने कहा…

चिंतन योग्‍य पोस्‍ट।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद ..शिखा जी, अतुल.शुक्लाजी व पल्लवी जी ....

कविता रावत ने कहा…

badiya saarthak prastuti ke liye dhanyavad!